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शोलोपदेशमालाबालावबोध
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हिवइ नल-दवदंती मार्गि अनेक वृक्षनां कउतिग जोतां, रथ उन्मार्गि चालिवा लागउ । इम मागि चालतां अंधकार प्रकट हउ। तिसिइ लोक चाली न सकइं, उरई-परई पडिवा लागा। एहवइ नलि दवदंतीनइ कहिउं, 'हे प्रिये ! निद्रा म करि, तिलक प्रकट करि ।' तिवारई दवदंती रथनइ अनि जेतलइ बइठी, तेतलइ तिलक सूर्य की परिई उद्योत करिवा लागउं । पछइ सर्व लोक सुखिई चालिवा लागा । इम चालतां नलि मुनि एक प्रतिमाई रहिउ दीठउ । तिवारई नल पितानइ कहइ, 'तातपाद ! अजूआलानइ योगिइ महात्मा एक दीसइ छइ । तु मार्गनउ कांई फल लीजइ । ए महात्मानइ काउमग्गि रहतां जे गंधहस्तीइ डील घसिङ छइ, तेहनई गघिई भमरा संतावई छई । ते परीसह मुनि सहइ छइ ।' ए वात सांभली निषधराजा पुत्र-सहित तिहां जई, मुनिनइ प्रणाम करी, सर्व उपद्रव निवारी, उपदेश सांभली (?लइ)। पछइ नल मुनिनइ पूछइ, 'ए दवदंतीना तिलकन एवडउंसि तेज ?' तिवारइ मुनि कहइ, 'जे चउवीस तीर्थकरनई तिलक दीघां हूंतां, तेहन ए फल । अजो घणा प्रकार होसिइं ।' इम सांभली मुनि वांदी आघा चाल्या । पंथ अवगाही आपणि नगरे आव्या । पछइ निषधिइ नलनई राज दीध', अनइ कचरनइ युवराज-पदवो देई आपणपई चारित्र लीधउं । तिवार-पछी नलराजा आपणी प्रजानई पालइ ।
इसिई अन्यदा नलराजा प्रधारनइ पूछइ, 'माहरइ पिताइ केतली भूमिका साधी हंती ?' तिवारइ प्रधान कहइ, 'पिता-थकी तुम्हे घणी भुंई साधी । पणि इहां-थकी वीस इ जोयण ऊपरि तक्षशिला नगरी, तेहनउ अधिपति कदंबराजा छइ, ते तुम्हारी आज्ञा न पालइ।' ए वात सांभली नलराजाइ कटक करी, तक्षशिलाह जई, नगर व टिउं । एहवइ कदंबराजा सामुहु नीकलीउ। तिवारइ नलि कहिउं, 'जे एवडां मनुष्मनउ क्षय कीजइ, ते काइ? आवि, आपणपे बेहू युद्ध करीइ।' कदंबि ए वचन मानिउं । पछइ बिहुनई युद्ध करतां कदंबि हारिडं। तिवारइ कदंबि दीक्षा लीधी। पछइ नलराजा कदंबना पुत्रनइ राज देई आपणइ घरि आविउ। त्रिणि खंड साधी सुखिइ रहइ छ
इसिइ कुबर राज्यनी वांछा करतउ शाकिनीनी परिई नलराजानां छिद्र जोइ । पणि नलराजा तु सरल । हिवह एकदा कुवर दुष्ट स्वभाव-लगी सारि-पासा आणी नलनइ कहइ, 'बांधव !
आवउ, आपणपे जूए खेलीइ ।' पछइ नल नइ कूबर बेहू रमिवा लागा। किवारइ नल जीपह, किवारइ कबर जीपइ । इम .रतां देवना योग-लगइ नल हारिवा लागउ, अनइ कुवर जीपवा लागउ। गाम, नगर, देस, भंडार, कोठार, अश्व, गज, रथ, सर्व हारइ, अनइ कुबर जीपड । तिसिई लोक हाहाकार करिवा लागा, 'स्वामिन् ! ए व्यसन मूकउ । ईणइ व्यसनि घणा लोक क्षयि गया छई।' तु ही नल पाछउ उइटइ नही। तिसिइ दवदंती आवीनइ कहइ, 'स्वामी! द्यत-क्रीडा मूंकि । वरि आपणउं राज भाईनइ आपहणी दिइ । पणि जे हारीनइ दीजइ, ते शोभइ नही।' जिम दसमी अवस्थाई हस्तोंद्र कांइ चेयइ-वेयइ नही, तिम ते नलराजा कांइ चेयइ-वेयइ नही। पछह दवदंती-सहित अंतःपुर पणि हारिउं। तिवारई कूबर नलनइ कहइ, 'ए तु मइ सर्व जीत । हिव माहरी भुंइ छांडि । तुझनइ बापिइ राज दीघउ हूंतउं, मुझनइ परमेसरि दी ।' ए वचन सांभली नलराजा राज्य-रिद्धि सर्व छांडी, एक पहिरणउं पहिरी, नीकलिउ। तिसिइ दवदंती पणि केडिई नीकली । तिवारई कूवर कहा, 'मइ तूं जूवटइ जीती छ। तं म जाएसि । तेतलह अमात्य कहइ, 'कचर ! तू वरांसीइ छ । ए सती परपुरुषनी छाया पणि न सहह । वली वडा भाईनी पत्नी माता-समान गणीह । हिव जु तूं रूडइ मूंकइ तु रूडउं नहोतरि ए सती भस्म करिसि । नवीन काई असाध्य नथी। एह-भणी रथ एक सई बलयुक्त सारथी-सहित दवदंतीनइ आपि ।"
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