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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध हिवइ धन अरण्य-माहि भइंसि चारइ । कांई ? आभीरनइ कुलि मूलगी एह जि वृत्ति, जे भइंसि चारीइं। इसिई अन्यदा वर्षाकाल आविउ । गाढउ कादम हउ । भइंसि क्रोंकार करिवा लागी। एहवइ धन चारिवा-भणी वरसतइ मेघि भईसिनइ लेई, माथइ छत्रडी धरी, नीकलिउ । पछा महा-अटवी-माहि भइंसिनई चारतां महात्मा एक प्रतिमाई रहिउ दीठउ । पणि एक जि पग भूमिकाई लागउ छइ । अनइ उपवासि करी महा-कृश छ । वली ताढिइ करी कांपतउ, वृ परिहं धजतउ छह । एहवउ ते मुनि देखी धननइ दया ऊपनीइ आपणी छत्रडी महात्माना माथा-ऊपरी महा-भक्तिभावना-सहित धरी रहिउ । पणि न ते धन थाकउ, न ते मेघ वरसतउ रहिउ । इम घणा प्रहर वृष्टि करी मेघ रहिउ । तेतलई महातमाई काउस्सग्ग पारिउ । पछइ धन प्रणाम करो महात्मानई पग चांपिवा लागउ । हाथ जोडी कहिवा लागउ, 'अहो मुनि ! ए काल तु विषम, अनइ पृथ्वी कर्दम-बहुल हुई । तु आज तुम्हे किहां-हूंता आव्या ? अनइ किहां जासिउ ?' तिवारई मुनि कहइ, हूं पांडुदेस-याउ आविउ अनइ गुरुनई वांदिवा-भणी लंकाइ जाइसु । पणि जातां ए वरसालउ आविउ, तु मुनिनइ वरसतइ मेघइ जावडं नावइ । तेह-भणी मइ नीम लीधउ- जां ए मेह वरसिसइ, तां किही नहो जाउं । इम चीतवी इहां बि हिउ । तु आज मेहनइ वरसतां 'सात दिन थया । ए अभिग्रह हिवडां पहुतु । तु हिबइ हैं किहां एक वस-महि जई रहिसु ।' तिवारई धन कहिवा लागउ. 'माहरइ भइसउ छइ. तिणि चडउ, जिम कादमन उ उपद्रव न हुइ ।' तिसिइं मुनि कहइ, महात्मा भईसइ न चडई । परनइं जिम पीड हुइ तिम न करई । महात्मा पाला जि चालई।' इम कहितउ ते मुनि धननइ साथिई नगरनइ परसिरि आविउ । तेतलइ धन कहइ, 'अहो मुनि ! जां हूं भईसि दोहउं, तां पडखउ ।' इम कही धन घरि आवी भइंसि दोही, घडउ एक दूधिई भरी, आपणपुं धन्य मानतउ, तिहां आवो महात्मानई पारणउं कराविउं । पछइ वर्षानइ व्यतिक्रमि महात्मा पोतनपरि आविउ । पछइ धन धूसरी-प्रिया-सहित श्रावकनउ धर्म सूधउं सम्यक्त्व-सहित पालइ । पछइ अवसरि चारित्र लेई, सात वरस दीक्षा पाली, मरण पामी, सुगात्रि जे दान दीधउं तेहनइ प्रमाणि, हैमवति क्षेत्रि बिन्हइ जीव युगलीयां हूयां । तिहां-हूंता मरी देवलोकि ऊपनां । वली तिहां-हंतउ मम्मणनउ जीव चिवी ईणइ भरतक्षेत्रि कोशलदेशि कोशलानगरीई इक्ष्वाकु-कुलि निषध एहवइ नामि राजा अनइ सुंदरी भार्या, तेहनी कूखिइ नल एहवइ नामि पुत्र हूउ । अनइ कूबर लघु बांधव हूउ । इसिई विदर्भदेशि कुंडिनपुरि भीमरथ राजा, पुष्पदंती-भार्या सहित, सुखिई दिवस गमाडइ छह । इसिइं पुष्पदंती पश्चिम-रात्रिई सुख-शिय्याई सूती सउणउं लही, राजानइ कहइ, 'स्वामी ! इम जाणउ वन हूंतउ दावानलनउ प्रेरिउ स्वेत हस्ती एक माहग्इ घरि आविउ ।' ए वात सांभली राजा कहइ, 'ए सउणानइ अनुसारो कोई पुण्याधिक जीव ताहरी कूखिई अवतरिसिइ ।' पछइ पुष्पदंती अनेक धर्मकाज करइ । इम धर्म-कर्म करतां साष्टि नव मास गया । पछइ भलइ दिवसि पुत्री जन्मी । पिताइ पुत्रजन्मनी परिई जन्म-महोत्सव कीधउ । पूर्व-कर्मानुभावलगी ते कन्यानइ भालि तिलक रत्न-समान ऊपनउं, जाणे सूर्य झलहलइ छइ । पछइ सूर्य-चंद्रदर्शन कराव्यां, छठइ दिनि छट्ठी जागी । हिवइ जे दावानल-हूंतउ स्वेत हस्ती घरि आवतक १. K. बार । २. K.P.L. ताहरइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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