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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
ए कलंक ऊपनउं छइ । इम जु वचन-मात्रिइं प्राणी एवडां कष्ट पामइ छइ, तु जे कायाइ करी पाप करइ छइ, ते तउ भवने सए नही छूटइ ।' इम ज्ञानीनां वचन सांभली, वैराग्य-रंगि पुरित हुंती, ईहापोह करतां जाती-स्मरण-ज्ञान ऊपनउं । आपणउ भवांतर दीठउ। तिवारई ऋषिदत्ता कर्म-थकी बीहती ज्ञानीनइ वीनवइ जउ, 'मुझनइ हिवइ जिन-दीक्षा दिउ ।' गुरु कहइ, 'राजानइ मनावि, जिम तुझनइ दीक्षा दिउं।' पछइ ए वात सांभली राजा पणि संसारनउं असारपणउं देखतउ सिंहरथ पुत्रनइ राज देई, ऋषिदत्ता भार्या-सहित राजाइ दीक्षा लीधी। पछइ विहार करतां, खड्ग-धारा-समान चारित्र पालतां, भद्दिलपुरि आव्या । तिहां संपूर्ण कर्म उन्मूली, केवलज्ञान पामी, बेहु मोक्षि पहुतां ।
इति श्री-शीलोपदेशमाला-बालाविबोधे श्री-ऋषिदत्ता-महासती-कथा ॥२९||
हिवइ दवदंत नी कथा कहइ -
[३०. दवदंतीनी कथा
ईणइ जबद्वीपि भरतक्षेत्रि अष्टोपद-समीपि संगमपुर नगर । तिहां मम्मण राजा वीरमती भार्या-सहित सुखिई राज करइ । अन्यदा प्रिया-सहित राजा आहेडा-भणी नगर-बाहिरिनीकलिउ। तिसिई संधात-साथइ महात्मा एक मल-मलिन-गात्र आवतउ देखी मन-माहि अपशुकन मानतउ राजाई महात्मा खली राखिउ, संघात-हूंतउ चूकविउ । बार घडी-ताई संतापी पछइ दया-परिणाम ऊपनई, राजाई महात्मा पूछिउ, "किहां हूंतउ तूं आविउ ? किहां जाएसि ?" तिवारई मुनि कहइ, 'हुँ रोहीतकनगर-हूंतउ आविउ । पण अष्टापदि बिंब नमस्करिवा-भणी जाउं छ । ते हैं तुम्हे हिवडा संघात-हूंतउ विछोहिउ।' इम वात करतां राजाराणीए दुःस्वप्ननी परिइं कोप मूकिउ। पछइ ते महात्मा-नइ भातपाणीई करी संपूर्ण भक्ति कीधी । तिसिई महात्माई ज्ञानरूप धर्म-ऊषध कर्म-रोगनी चिकित्सा भणी आपिउं । पछइ महात्मा अष्टापदि पहुतउ ।
हिवइ ते बिहुइ महात्माना संसर्ग-लगइ श्रावकउं धर्म तिम पालिवा लागां; जिम रांक द्रव्यनइ पालइ । अन्यदा वीरमतीनइ जिनधर्मनी गाढी स्थिरता करिवा-भणी शासन-देवताई अष्टापद तीर्थ देखाडि । तिसिईतिहां वीरमतीइं, अष्टापद-ऊपरि शाश्वती प्रतिमाई जे देवता पूजई अचई छई ते देखी परम आनंद धरती चउवीस इ जिननी प्रतिमा नमस्करी, विद्याधरीनी परि? आप. णड नगरि पाछी आवी । पछइ जिन-जिन-प्रति वीस-वीस आंबिल करी रत्नमई चउवीस तिलक कराव्यां । पछइ सपरिवार अष्टापद-पर्वति जई स्नात्र-महोत्सप-पूर्वक चउवीस इ तीर्थकरनई चउवीस इ तिलक दीधां । भावपूर्वक वली चारण-श्रमण महात्मा तिहां आविआ हूंता, तेहनई दान देई, महा-भक्तिपूर्वक नाची, गीत गाई, घरि आवी । हिवइ बिहुँनइ डील इ जूजू पणि जीव एक जि । इम धर्म-कर्म करतां समाधि-मरण पामी, बेहूं देवलोकि देव-देवी हुआ। तिहां हूंतउ मम्मणनउ जीव चिवी, ईणइ जंबूद्वीपि, भरतक्षेत्रि, बहुली-देशि, पोतनपुरि नगरि, धम्मिल्ल नामिई आभारनी भार्या रेणुका, तेहनी कूखिई, धन एहवई नामिइ पुत्र हउ । अनइ वीरमतीनड जीव देवलोक-तु चिवी धूसरी एहवइ नामि धननी भार्या हुई ।
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