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शोलोपदेशमाला बालावबोध
एक मनुष्यं हणिउ। पछइ कुमारनइ घरि आवी, दुष्टबुद्धिइं ऋषिदत्तानउं मुख लोहीइ खरडिउं । वलो मांसनउ पोंडउ गांठडीइं बांधिउ । हिवइ ऋषिदत्ता सूती हुँती ए वात जाणइ नही । एतला बोल करी राक्षसी गई । एहवइ पाडोसो, जेहनउ मनुष्य हणिउ हूंतु ते, जउ जागइ (2) तु मनुष्य मारिउ देखी कोलाहल कीघउ । तेतलइ कुमार जागिउ । ते पुरूषनी वात सांभली । प्रियानउं मुख जउ जोइ, तु लोहीइ खरडिउं दोठउं । अनइ छेहडइ मांसनउ पीडउ दीठउ । तिसिई कुमारना चित्तना विषइ शंका ऊपनी, 'किसिउँ भई, जिम आगइ राक्षसी सांभलीइ, तिम ए स्त्री दीसइ छइ । तु किसिउं माहरइ ए प्राणवल्लभा राक्षसी छइ ? ए वात संभषइ नही, पणि इहां दीसइ छइ ।' पछइ कुमारि तत्काल प्रिया जगाडी । जिम सूती ऊठी, तिम नि पूछिया लागउ, 'हे देवि ! तूजउ गोपवइ नहीं, तु हूं तूनइ कांई पूछ।' प्रिया कहर, 'पूछ।' तिवारई कुमार कहइ, 'हे प्रिये! आज पुरुष एक रात्रि मारिउ सांभलिउ । अनइ आज तु ताहरउ मुख पणि लोहीइ खरडि दीसइ छ । यली मांसपिंड ओसीसइ मुकिउ छइ। तु कहि-न तूं मुनिपुत्रिका हुई-ना सांप्रत ए किसिउ राक्षसी थई ? इम जे प्रत्यक्ष देखद, ते किम सावउ न मानइ ?' पछइ ऋषिदत्ता भरिनउं एहवलं वचन सांभली बीहती हंती तरल-लोचन कुमार प्रति कहा, 'स्वामिन् ! ' लहुडपणइ जउ मइ मांसनी स्पृहा कीधी हुत, तु आज इच्छा है ऊपजत | पणि तां ए वात असंभाव्य दीसइ छइ जे मुखइ करी ऊचराइ नही । पणि तां कुणहि वैरि-लगइ अथवा माहरा पूर्विला कर्म-लगइ ए भाव कीधउ छइ । अनइ जु स्वामीनइ कदाचित् २ अप्रतीति ऊपनी छइ, तु घट-सपे आणउ जिम प्रतीति ऊपजावउं ।' तिसिइ कुमार कृपासागर, विवे की तेह-प्रतिई कहइ, 'हे भद्रि ! हूं तु तुझनइ निर्दोष जाणउं छउं, बीजना चंद्रमानी परिइ ।' इम कहतउ पाणीनउ लोटउ लेई कुमार आपणइ हाथि प्रियानउ मुख धोवा लागउ ।
इम सदाइ ते सुलसा रात्रि पुरुषनइ हणी अवस्वापिनी-विद्यानह बलिइ कुमारनइ परि आवी, ऋषदत्ता जि सूती छइ तेहन मुख लोहोइ खरडी, उसीसइ वली मसिपिंड मंकीनइ जाइ । अनइ कुमार सदा प्रियानउ मुख घोइ, पोंडउ बाहरि नंखावा । इम करतां घणा दिन गया । हिवइ ए वात प्रभातना वायुनी परिई विस्तरती राजा-आगलि वात गई । पछा राजाइ प्रधान तेडी कहिउ, 'तुम्ह थकां दिन दिन प्रति एक एक पुरुष कोइ हणइ छ । तु मउडइ मउडइ बि-बि पुरुष हणासिइ ।' तिवारइ प्रधान कहइ, 'अम्हे यत्न घणउ करउ, पणि जाणी न सकीइ । न जाणीइ, नगर-माहि मरगी छइ कि देवता छ कि योगिणि छई ? एह-भणी पाखंडी सर्व नगर-बाहरि काढोइ । पछइ शांति होसिइ ।' पछइ राजाइ जैन मुनि टाली सर्व दर्शनी काढया । एहवइ पापिणी सुलसा राजानइ आवी मिली । एकांत मांगी कहिवा. लागी, 'स्वामिन् ! आज सउणा-माहि मुझनइ कोई कही गयउ जउ-पाखंडीनइ निरपराध राजा कांई. काढइ छइ ? जिम दूध बिलाई पीई जाइ अनइ रीसिइ बालक मारीइ, तिम जे कुमारि वनचारिणी ऋषिदत्ता. आणी छइ ए सर्व विलसित तेहनां । अनइ राजा दर्शनीनई काढइ । इम मुझनई कही ते अहश्य हूउ । अनइ जउ न मानउ तु आज राजा आपणपे जई कउतिग जोउ ।' तिवार पछी राजाइ ते सुलसा विसर्जी । तीणी रात्रि पुत्र आपण-समीपि राखिउ, अनइ ऋषिदत्ता-समीपि
१. K.L.P. लहुडपण-लगइ । २. L. Pu. अप्रिति ।
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