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शीलोपदेशमाला - बालावबोध
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हरी सकइ ? कदापि मेरुपर्वतनी चूलिका चालइ अनइ कदापि पश्चिमिदं सूर्यं ऊगह, पणि हर्ड शील भंग न करउं ।' पछइ हरिणीइं अनेक दीन बोल बोल्यां, लोभ देखाडिया, पणि तुह-इ न मानइ | तिवारइ हरिणीइ नर्मदानई पांचसइ नाडी देवरावी । पणि लगारइ ते सतीनउ रोम मात्र खुभु नही, अनइ शील-इ भागउं नही ।
तिसिहं नर्मदानइ मारतां शीलनइ प्रमाणिई हरिणी वेश्या मूई । पछइ बीजी वेश्या भयभीत हूंती पगे लागी नर्मदानइ मन वइ, 'तूं अम्हारइ स्वामिनी था । प्रभुत्व- पणइ आपणी इच्छाइ शाल पालि ।' पछ३ नर्मदासुंदरी ते वचन मानिउं । इम करतां प्रधानि नर्मदानउं रूप देखी: प्रार्थना करवा लागउ । पणि मानइ नहीं । तिबारइ प्रधानि राजा - आगलि जई नर्मदाना रूपनी वर्णना कीधी । तेतलइ राजाईं नर्मदासुंदरी-भणा पालखी मोकली । तिसिहं राजाने सेवके जई, महाविस्तारि नर्मदासु दरी सुखासनि बइसारी, माथइ छत्र धरी चलावी । एहवइ नर्मदासुंदरी शीलनी रक्षा भणी गहिली हूई । मोटउ एक नगरनउ खाल तेह-माहि ऊलली पडी । पछइ इम tet, 'लोको ! माहरइ सयरि यक्षकर्दम कहितां सूकडि, कर्पूर, कस्तूरी लागी छइ ।' इम कहिती सघलाई लोकनइ कादवि छांटइ, अनइ आपणां वस्त्र फाडइ । वली लोक-साहमी धूलि नांखर । इसिई प्रधानिहं राजानइ कहिउं, 'स्वामी ! न जाणीइ, छलभेद हूउ कि दृष्टि लागी ।' तिसिद्धं राजाई मंत्रवादी तेडिया । ते जेतलइ मंत्र गुणी गुणी सरिसव नाखई, तेतलइं नर्मदासु दरी ते साहमा पाषाण तिम नांखिवा लागी, जिम ते मंत्रवादी नासी गया । हिवइ नगर - माहि गहिलीनई परिहं फिरइ, वोतरागनां गीत गाइ ।
इसिहं जे जिनदास भरूअच्छि हंतु आविउ छइ, तीणइ ते नर्मदासुंदरीनइ मुखिई वीतरागनी गोत सांभल्यां । तिवारइ जिनदास आगलि आवी दयापर हूंत कवा लागउ, 6 हे सुभगि ! तुझन ए स्युं थयउं ? तूं तु परम श्राविका जिनभक्त छइ ।' तिवारइं नर्मदा कहइ, 'तूं जउ जिन भक्त छइ, तु माहरउ स्वरूप एकांति पूछे, पणि लोक देखतां म पूछेसि ।' हिवह अन्यदा गीत गाती वन - माहि जई, देव वांदी, गीत गाई छइ, तिसिहं जिनदास पणि केडइ लागउ वन-माहि गयउ । तिहां तेहनइ ' वांदु ' कही जिणदास पूछिवा लागउ, तूं कउण ? ' तिवारइ नर्मदासुंदरी आपण स्वरूप सर्व श्रावक - आगलि कहिउं । तिवारइ जिनदास कहइ, after ! ताहरी मोटी वात । तई जिम शोल राखिउं, तिम बीजउ कोइ राखी न सकइ । हिव हूं ताहरइ कीधइ ईहां आविउ छउं । भरूपछि हूंतउ वीरदास - मित्रिइं हूं मोकलिउ । तु हिवई तूं खेद म घरे । जिम रूड हुसिहं तिम हूं करिसु' । पणि आज पछी राजमार्गि जेतला पाणीना घडा आवई, तेतला तू भांजे ।' इम संकेत करी ते बेछू नगर - माहि आन्या ।
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पछइ नर्मदा पाषाण नांखर, हांडलां फोडइ, लोकनइ संतापइ । इसिहं नगरनउ राजा नीकलिङ । तिणि ते गहिली दीठी । तिसिहं जिनदास आगलि ऊभड हूंतउ । तेहनइ कहिउं जउ, 'इणिइं नगर सघल वानरीनी परि संता पिडं । हिवइ तिम करि, जिम प्रवहणि बइसारी एहनइ परद्वीपि लेई जा, जिम व्याधि जुइ ।' तिवारइ जिनदासि पडिवजिउं । मन-माहि हखिउ । पछइ लोहार तेडी, नर्मदानह पग अठील घाती, प्रवहणि बइसारी, सर्व वाखर प्रवहणि घाल्या । पछइ आपण प्रवहणि बरसी चालिउ । मार्गि जातां अठील भांजी, वस्त्र आभरण पहिरावी, नर्मदापुरि आणी । तिसिहं पिताई १. K. करेसि । २. K. क्रयाणां ।
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