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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
जीणइ प्रदेशि बालक पडिउ छइ, तीणइ प्रदेसि आविउ । देखइ, तु अंजनाना शीलनइ प्रमाणि बालक पल्यंकनी परिई सूतउ छइ , पणि शिला चूर थई बालकनई प्रहारिइं । पछइ बालकनइ सूर्यकेतु लेइ, चउ पखेर अंग स्पर्शी, बिहुँ हाथ-ऊपरि बहसारी, भाणेजनइ बेटउ आणी दीधउ । पछइ बालक अक्षतअंग देखी माता ही । जिम दालिद्री निधान पामीइ हीड, तिम माता ही । तिहां पुत्रनई नाम शिलाचूरण दीधउं । पछइ उत्सव-पूर्वक सूर्य केतु घरि लीइ आविउ । घणे दिने सगानइं मिली, तेह-भणी सर्व हा ।।
हिवइ तिहां अंजनासुंदरी दान देती सुखइ आपणा दिवस गमाडइ छइ । इसिइ अंजनादरीनी सघले वात प्रसरी । एहवइ पवनंजयकुमार पणि' वरुणनइ जीपी जितकासी महोत्सव पूर्वक घरि आविउ । पितानइ चरण प्रणमी, मातानी आसीस लेतु, सुहासिणीए तिलक(?कि) वधावीते' जयजयकार लोकनां वचन सांभलतु, जायानउं मुख जोणहार हूंतउ, घरि आविउ । जिम प्रासाद बिंबविण न शोभइ, तिम प्रिया-विण घर शून्य देखी विरहि करी आकुलउ कुमार हउ । चित्रशाला झालनी परि मानतउ, राजरिद्धि तृण-समान गणतउ, विलाप करिवा लागउ, हे कांते ! हे प्राणनाथि ! कहि, तूं किहां गई ? अथवा धाविमाताइ कांइ न राखो ? अथवा प्रधानो ! तुम्हे कालक्षेप करी कांइ न राखी? हा मातापिताउ! मुझ आवतां-लगइ कांइ न पडिख्या? तु इम जाणीइ, ते घर-हंती काढ्या पछी स्वापदे खाधी हुसिइ । तु हिवइ ए स्त्री-रत्न किहां पामीसिड दुम विलाप करतउ पवनंजय नगरनइ परिसरि चिहि रचावी चंदनना काष्टनी। तेतलई मातापिता आकुल-व्याकुल हूंता पुत्रनइ समझावई, पणि समझइ नहो । इसिइ ऋषभदत्तिई आवी मित्रनइ आलिंगी कालक्षेप-भणी त्रिणि दिन माग्या । अनइ वली कुमारनइ कहिलं, 'ते शील. नइ प्रमाणि जीवती होसिइ । तेह-भणी हूं प्रतिज्ञा करउं छउं ।' पछइ पवनंजय मित्रना वचनलगइ त्रिण दिवस-तांई पडिखिउ ।
हवइ ऋषभदत्त विमानि बइसी अनेक गाम-नगर जोतउ त्रीजइ दिनि सूर्यपुरनइ उद्यानि आविउ । तिहां स्त्रीनी गोष्ठि इसी सांभली जु, 'शिलाचूरण बालक-सरीखउ सोहागी को दीसह नही ।' ए नाम सांभली ऋषभदत्त चीतवइ, 'ए अंजनासुदरीनउ पुत्र तेहनउं नाम घटइ।' पछइ प्रच्छन्नपणइ सर्व वात सांभली, सूर्यकेतु-राजानी सभाई जउ आवइ, तु अंजनासुदरी पुत्र-सहित दीठी । तत्काल उलखी । पछइ अंजनाइ ऋषभदत्त उलखीउ, लाजी हूंती आसन मूंकी ऊभी थई । तिहां सूर्यकेतुनइ भरिना मित्रनउं स्वरूप कहीं आगता-स्वागत कराविउं । एह ऋषभदत्त कहिवा लागउ जु, 'अंजनासुंदरीनइ विरहि पवनंजयकुमार अग्नि-माहि पइसतउ मह राखिउ छ । त्रिण्णि दिन वोल्या छई । तेह-भणी तुम्हे विलंब म करउ । अंजनानइ चलावउ । हिवइ तुम्हनइ कल्याण हु । तुम्हारउ ए उपगार सय साखे पसरउ ।' पछइ सूर्यकेतु जमाईना मित्र-साथिई अंजनासुंदरी पुत्र सहित चलावी । ऋषभदत्त विमानि बइसारी घरि लेई आवि। तेतलइ राजानइ बधामणी दोधी। अनइ पवनंजय हखिउ। पवनंजयनइ प्रियानइ आगमनि नवउ जन्म हुआ। पछइ प्रहलादन-राजा सपरिवार सामहु आवो अंजनासुन्दरी पुत्र-सहित नगर-माहि आणी। पवनंजयना पुत्रनइ शिलाचूरण जे नाम हूंतउ, ते पछइ वली हनूमंत एवढं नाम दीघउं । राजाई पवनंजयनइ राज देइ आपणपे दीक्षा लीधी । १, P. K. Pu. वधारीते, L. वधारीजते । २. K. जणावी ।
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