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शौलोपदेशमाला - बालावबोध
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शील राखती, कंदमूल आहार लेती, नीझरणना पाणी पीती, किहां एक वन निकुंज-माहि पुत्र प्रसवि सूर्य समान । ते वन-माहि अंजनासुंदरीना शीलरूप शस्त्रनइ प्रमाणई सोह, वाघ, चित्रक, शृगाल, चोर एक इ टूकडा आवी न सकई । इसिई एकदा पाणी जोवा भणी दासी मोकली । तिणि दाइ आवी अंजनासुंदरी वीनवी जउ, 'स्वामिनि ! पर्वतना शृंग- उपरि एक महात्मा काउस्सग्गि ऊभउ रोहेउ छइ ।' ए वात सांभली अंजनानइ तृषा-बुभुक्षा वीसरी गई । पछइ अंजना क-बाल नइ लेई महात्मा-समीप आवी, भक्तिपूर्वक त्रिणि प्रदक्षिणा देई मुनि वांदिउ । तेतलइ मुनि कायोत्सर्ग पारो धर्मलाभ दीघउ । अंजना आगलि बइठी । मुनि उपदेश दिइ, 'हे महाभागि ! ए संसार - माहि जीवन एक धर्म जि शरण छइ । संयोग नइ वियोग कर्म - जि लगाइ हुई । जे जीव परनइदूषण दिइ, ते सर्व फोक । जां जीव कर्म भोगवइ नहीं, तां लगइ जीव छूटइ नही ।' इत्यादि धर्मोपदेश सांभली, वैराग्यरंग ऊपनइ अरिहंतनउ धर्म सांभली अभिग्रह - सहित श्री- सम्यक्त्व लीधउं । पछइ ते महात्मा अतिशयवंत जाणी अंजना पूछइ, 'स्वामिन ! केहा कर्म-लगइ मुझनइ ए दुक्ख ऊपन ?' मुनि कहइ, 'हे भद्रि ! को एक व्यवहारीउ, तेहनइ घरि तूं वल्लभा हु । अन जे ताहरइ बीजी सउकि, ते जिनधर्मि करी वासित । अभिग्रह लीघउ - ' वीतरागनी प्रतिमा तेहनइ पूजी फूल-धूप करी जिमउं ।' अन्यदा मिथ्यात्वाभिनिवेश - लगइ [तईं] प्रतिमा चार प्रहर ऊकरडा माहि गोपवी राखी, अनइ ते सउकि श्राविका देव पूज्या-पाखइ जिमइ नही । इम बार पहुर भूखी रही । पछई तई दया लगइ ऊकरडा-माहि-थकउं बिंब काढी दोघउं । ते कर्मन ए विपाक, जे तुझनइ भर्तार साथि बार वरसनउ वियोग हूउ ।' वली पतिव्रता कहिवा लागी हाथ जोडीनछ, 'स्वामिन ! माहरइ केडइ ए दासी कर्म भोगवइ ते कांइ ?' मुनि कहइ, 'जिवारइ त प्रतिमा गोपवी, तिवारई ईणि कहिउं, "ए अजी उघाडी दीसइ छइ ।” पछ त विशेषत ढांकी । ते कर्म-लगह ए पणि तुझ केडिइ दुक्ख पामइ छ ।' ए वात सांभली सविस्मय हूंती अंजनासुंदरी चीतवर, 'तां सघले-इ कर्म-जि-नइ प्रधानपणउं, जे दुक्ख-सुख पामीइ ।' पछड़े ते महासती सत्त्व अबलंबी पर्वतनइ शिखरि रहीं ।
एव तेन माउलट सूर्यकेतु नामा विद्याधर नंदीश्वरि यात्रा करी पाछउ घर-भणी वलिउ, dass ऋषिनइ प्रमाणि विमान खलिउं । कांह जिणि कारणि तीर्थनइ लांधिव विमान खलीइ * (१) । तिसिइ सूर्यकेतु विमान हूंतउ ऊतरी, ते मुनि वांदी आपणपुं धन्य मानिवा लागउ | तिसिहं ते देखी साहम्मिणिनी बुद्धिइ 'वांदू' इम कहइ, तेतलइं ते बहिननी बेटी उलखी । हर्षित हूंत ते कन्हई सर्व वृत्तांत पूछी, अंजनासुंदरी बालक - पुत्र - दासी सहित विमान बइसारी, सूर्य केतु चालिउ । तेतलइ विमाननी घांट वाजिवा लागी । ते घांटनउ नाद सांभली बालक योगीनी परिई ध्यानस्थ रहिउ - बोलइ नही, चालइ नही । तिसिह ते बालस्वभाव-लगइ माउलनइ उत्संगहूंत ऊल्ली विमाननी घांटइ वलगउ । तेतलइ बालक भुई पडिउ । - इसिई अंजनासुन्दरी विलाप करती कहइ, अरे दैव ! पहिलउं तां तेहवउं दुक्ख सहिउं, अनइ हिवडां जे बेटानरं मुख जोती सुख पामती तेहीनइ सांसही न सकिउं ?' इम विलाप करती देवनइ उलंभा देती, रुदन करती कहइ, 'पुत्र सिलाई आफलिउ हुसिइ, कि भुंइ पडिउ हुसिइ ?' तेतलइ सूर्यकेतु विमान तु ऊतरी १. K. स्वलिउं । २ P. स्व लीहीइ, L. खलहिह । ३. K. तेह छ ।
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