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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
काई रोग छइ ? अथवा काइ वैद्य न हुंतउ ? अथवा ऊषध माहरइ घरि लाभतां न हुंतां ? अथवा ए धुरि-लगइ किसिउ दूबली जि छइ ?' इम कहिइ हृतई अधिकारी छइ तीणइ प्रणाम करी भरतनइ कहिउं, 'स्वामी! जे दिवस-लगइ तुम्हे दिग्विजय-भणी चाल्या, ते दिवस-लगइ स्त्री-रत्नपणानी अणवांछाइं साठि सहस्र वर्ष-सीम कर्मना क्षय भगी आंबिल कीधां ।' हिव ए वात सांभली भरत पश्चात्ताप करतउ सुंदरी-समोपि आवी पूछा, 'कहि-न, तूं दीक्षा लेणहारि छइ ?' तिवारई सुंदरीइ कहिउं, 'हा।' तिसिई भरत कहिवा लागउ, 'मई जे तुझनइ चारित्र लेतां विघ्न कीधउं ते खमि । काई धन्य ते, जे चारित्र पालइ । अनइ एक हुँ 'अभागीउ छउं, जे विषयनउ वाहिउ चारित्र न लिउं । तु तु चालि, जिम परमेश्वर-समीपि जई दीक्षा तुझनइ देवरावउं।'
इसिइ त्रैलोक्यनउ नायक विहार करतउ अष्टापदि आवी समोसरिउ । देवतानी कोडि तिहां मिली। तेतलइ भरतनइ कुणहि एकणि आवी वधामणी दीधी ज, 'स्वामी अष्टापदि समोसर्या ।' पछइ तेहनइ भरति साढी बार कोडि सुवर्णना आपी वधामणा-भणी । तिसिई सुंदरी कहइ, 'हे भरत ! माहरा मनोरथ फलिया, जे स्वामी आव्या । हिवइ हूँ दीक्षा लिउँ ।' तिसिई भरत सपरिवार, सनागरिक स्वामीनइ वांदिवा चालिउ। तिहां स्वामीई धर्मोपदेश दीघउ । पछइ भरति संदरीनइ दीक्षा-महोत्सव कराविउ । तिवारई सुंदरी साथिई घणी स्त्रीए दीक्षा लीधी। सुंदरी महा हर्ष धरती कहइ, 'स्वामी ! धन्य ते, जे ताहरउ मार्ग आदरइ ।' इम कहती सुंदरी महासती-माहि आवी बइठी। अनइ भरत वांदी अयोध्याई पहुतउ । हिवइ सुंदरी निर्मल चारित्र पाली, घातिया कर्मनउ क्षय करी, मोक्षि पहुती । इम संक्षेपिई सुंदरीनउ दृष्टांत कहिउं ॥२५॥
हिवइ अंजणासुंदरीनउ दृष्टांत कहीइ
[२६. अंजनासुदरी-दृष्टांत ] ईणइ जंबूद्वीपि वैताढ्य-पर्वति प्रहलादनपुर नगर । तिहां प्रहलादन नामई राजा, पद्मावती राणी । तेहनउ पुत्र पवनंजय एहवइ नामिई छइ । हिवइ तेहनइ ऋषभदत्त एहवइ नामि मित्र । ते साथिई क्रीडा-विनोद करतां मित्र-सहित सुखिइं काल गमाडइ ।
___ इसिई तीणइ जि वैताब्य-पर्वति अंजनपुर नगर । तिहां अंजनकेतु राजा, अंजनावती राणी। तेहनी पत्री अंजनासुन्दरी पणि महा रूपवती, गुणवती, भणती-गुणती सर्व कलानइ पारि पहती ।। वात सघले राजानई देशि प्रसरी जु-'आजनइ कालि एडवर्ड रूप-लावण्य अनेथि नथी।' पछइ सघले राजाए आपणउ आपणउ प्रधान अनइ आपणां आपणां रूपनां पट मोकल्यां । हिवह राजा सर्व पट लोड, पणि एकु-इ रुचइ नही । ईसिई पवनंजयकुमारनउ पट आणि उ । ते देखी अनेरा सर्व हमारना पट नांखी, ते रूप जोवा लागउ । राजा पछइ अंजनासुंदरी अनइ पवनंजयना रूपनड रीवाद देखो प्रधान छिर, 'जोइन, सरी वां रूप छइं ।' तिवारइं प्रधान कहिवा लागउ. 'स्वामी ! रूप जोतां तु देवदत्त-कुमारनउ रूप अधिकउं छइ । पणि केवलीइ कहिउं छह जउ.
र वरसि मुक्तिगामी होसिई। एह-भणी ते अल्प-आयु जाणी ए संबंध रहउ । पवनंजयनउ संबंध करउ ।'
१. K. प्रमादी छ । २. K. L. Pu. रायतने पसरी ।
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