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मेरुसुन्दरगणि-विरचित
जिम मदनरेखाइ शीलरक्षा भणी तृणानी परिई राजऋद्धि परिहरी, शील पालिडं, तिम अनेरी स्त्रीए इम जि शील पालिवउं । ते दृष्टांत - पूर्वक कहइ -
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नंदउ सीलादिय - जणविंदा सुंदरी महाभागा । अंजणसुंदरि-नमयासुंदरि - रइसुंदरीओ य ॥५५
व्याख्या:- ते सुंदरी महासती १, अंजणासुं री २, नर्मदासुंदरी ३, रतिसुंदरी ४ - ए च्यारि महासती चिरकाल - सीम नांदउ । ते किसी छइ ? जीणि शींलि गुणि करी हर्षाव्यां सर्व-जन - लोकना I वृंद = समूह छ । वली किसी छइ ? महाभागा = महा भाग्यवंत ते कहीइ जेहनइ आजन्म-मरणांत-सीम एक इ अपवाद नथी हूउ । एतलउ गाथार्थ थयउ । विशेष अर्थ कथा - हुंत जाणिवउ । तिहां पहिलउं सुंदरीनी कथा कहीइ
(२५. सती सुंदरीनुं दृष्टांत)
इणी अवसर्पिणीह श्री आदिनाथ, नाभिराजानु पुत्र, विनोता-नगरीइ राज करइ । सुमंगलासुनंदा ए बि भार्या सहित सुखिई काल अतिक्रमावर ।
अन्यदा सुमंगलाई चऊद सउणां दीठां । पछइ तिणि जई ऋषभदेवनइ कहिउं । स्वामी कहइ, 'ताहरी कुखिहं चक्रवर्ति होसिइ ।' ए वात सांभली गर्भ वहतां सार्धाष्ट नव मास गया । पछs भरत नइ ब्राह्मी युगल सुमंगलाइ प्रसविउं । तिसिह वली सुनंदाइ पणि बाहुबलि नह सुंदरी युगल प्रसविउँ । पछइ वली सुमंगलाई ऊगणपंचास पुत्र - युगल प्रसव्यां । जिम गज वन माहि वाइ, तिम सउ पुत्र वाघिवा लागा । मोटा हुआ। यूथनाथनी परिहं स्वामी पुत्रे वीटिया रहई । तिहां सउ शिल्प स्वामीई लोकना व्यवहार-भणी प्रकट कीधां । भरतनई बहुत्तरि कला भणावी, तिम बीजाइ पुत्रनई बहुत्तरि कला सीखवी । कांई सुपात्र शालिना बीजनी परिहं शतधा विद्या वाइ । पछइ वली बाहूचलिनइ पुरुष, स्त्री, हस्ती, अश्वनां लक्षण संपूर्ण सीखण्यां, अनइ अढाइ लिपि ब्राह्मीनइ सीखवी । सुंदरीनइ पणि गणितादि विद्या सीखवी । इसिह कल्पवृक्ष पणि फलादि देता रहिया । युगलियां सीदावा लागां । एहवइ अग्नि-धर्म प्रकट थयउ ।
इम एकदा युगलियां श्री ऋषभदेवनइ राज्याभिषेक करवानी वांछाइ गंगार पाणी लेवा गया छ । एहवइ स्वामीनइ राज्याभिषेकनउ समय जाणी, इंद्रह आवी स्वामीनह राज्याभिषेक करी, सोनानी कांब लेई आग'ले ऊभउ रहिउ । इसिइ युगलियां आव्यां । स्वामी सालंकार, साभरण देखी विनय लगइ पाणी पग- ऊपरि नामिउं । तिहां इंद्र तूठउ । पछइ विनीतानगरी की भी । नवी राज्यस्थित सर्व स्वामी कीधी । पछइ स्वामी संसार सुख-विमुख हूंता, भोगफल - कर्मन क्षयि लोकांतिक देव आवी दीक्षानु समय बोलइ जु, 'स्वामी ! धर्मतीर्थ प्रवर्तावर ।' तेतलइ स्वामी ज्ञानि करी दीक्षानु समय जाणी, भरत चक्रवर्तिनइ मूलगू राज्य दीघउं, अनइ बहुलीदेसनु राज्य बाहुबलिन दीधरं । बीजा इ पुत्रनई एकेकउ देस विहिची दीघउ । पछइ स्वामीइ दीक्षा लीधी । आर्य-अनार्य देसि स्वामी विहार करता वरसमइ दिनि श्री श्रेयांसनइ घरि पहिलउं पारणउं इक्षुरसि करी की उं । तिहां थिकउ दान-धर्म विस्तरिउ । देवताए साढीबार कोडि सुवर्णनी वृष्टि कीधी । हिवइ स्वामी छदमस्थावस्थाइं सर्व देसि विहार करता, एक सहश्र वर्षनइ 'अतिक्रमि, अयोध्यानइ परिसरि, पुरिमतालपुरि, शकटमुख उद्यानवनि, ऋषभनाथनइ अष्टम-तपि न्यग्रोध वृक्ष-तलइ फागुण वदी इग्यारसिहं केबलज्ञान ऊपनउं । देवताए समवसरण कीधउं । तिहां इंद्रादिक देवताए केवल - महिमा की उ ।
१. K आंतरइ
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