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शीलोपदेशमाला-बालावबोध तेतलइ सुभद्राई काचा तांतणा लेई चालणी बांधी । सर्व लोक देखतां ते चालणी कुआ-माहि घाती, माहि-थिकउ पाणी काढिउ । पणि एक बिंदु पाछउंन पडिउं। इम पाणी कूआ-बाहरि काढी राजा
आगलि ऊभी रही। तेतलइ राजादिक सर्व लोक' जयजयारव करवा लागा। 'वत्सि ! ए नगरिनी पोलि तहि जि उघडिसिइ ।' इम कहतां मंत्रि, सामंत, भूपाल, पौरलोक सर्व सुभद्रा साथि हुआ। सुभद्रा पणि भद्रहस्तीनी गतिइं चालती, वीतराग हीआ-माहि धरती, नवकार ऊचरती, ते महासती पोलिनइ बारणइ आवी, सर्व-साखि कहिवा लागी, 'जउ मइ बुद्धदास टाली इणि भवि मन-वचन-कायाई करी अनेरउ पुरुष चीतविउ हुइ, तु पोलि म ऊघडिज्यो । अनइ जउ परपुरुष न चीतविउ हुइ, तु पोलि ऊघडउ ।' 'इम कही पाणीई पोलि छांटी त्रिण्णि वार । तेतलइ पोलि ऊघडी । आकाशि देव-दुंदुभि वाजी । देवताए जयजयारव कीधउ। इम सासू-नणंद देखतां त्रिणि पोलि ऊघाडी । हिवइ चउथी पोलि राखी, वली कहिउं, 'जि को बीजी इ सती हुइ, ते चउथी पोलि ऊघाडिज्यो ।' इम कही गाजतइ-वाजतइ सुभद्रा सघले देहरे चैत्य-परवाडि करी, राजादिक लोके परिवरी घरि आवी । इसिई सासू, स्वसुरउ, भर्तार आवी आपणउ अपराध खमावी कहई, 'अम्हे वरास्यां । धन्य जिनशासन, जिहां एवडु महिमा छइ।' पछइ राजा आपणइ घरि गयउ । हिवइ बुद्धदास जिनधर्म-ऊपरि सादर हूउ । पछइ केतलउ काल गृहस्थ-धर्म पाली, अवसरि चारित्र पाली, सुगतिनइ भाजन हुओ।
इति श्री-शीलोपदेशमाला-बालावबोधे सुभद्रा-कथा समाप्ता ।।२३॥
निअ-सील-रक्खणत्थं तणं व रज्जं पि परिहरंतीए ।
सयल-सईणं मज्झे इह रेहा मयणरेहाए ॥५२ व्याख्या:-निज आपणउं शील राखिवा-भणी तृणानी परिइं राजनां सुख परिहरीआं जिणि ते मदनरेखा महासती इहां-पृथ्वीमाहि समस्त सतीनइ धुरि पहिली रेखा हुई । इम संक्षेपिड गाथानउ अर्थ हूउ । विस्तरई अर्थ कथा-ढूंतउ जाणिवउ । हिव ते मदनरेखानी कथा कहीइ -
( २४. मदनरेखा सतीनी कथा ) अवंतीदेशि सुदर्शन नगर । तिहां राजा मणिरथ राज करइ, अनइ युगबाहु युवराज-पदवी भोगवइ । तेहनइ मदनरेखा एहवइ नामिई भार्या हुई । ते मदनरेखा आपणां धर्मकरम करती सुखिई काल गमाडि । अन्यदा मणिरथराजाई मदनरेखानउं रूप दीठउं। व्यामोहिउ थिका मदनरेखा-भणी वस्त्र, आभरण, अलंकार, सुखडी मोकलइ। अनइ मदनरेखा जेठना मोकल्याभणी हर्षित-थिको लिइ । इम केतलाएक दिवस अतिक्रम्या । ____ इसिइं मणिरथराजाई दूती मोकली । तिणिइ दूतीई आवी मदनरेखानइ राजानउ अभिप्राय कहिउ जु, 'हे सुभगि ! जे दिवस-लगइ राजाइ तूं दिठी, ते दिवस-लगइ राजा ताहरइ विषइ सानुराग हुउ । हिवइ राजा कहइ छइ, "माहरउ बोल मानि अनइ राजनी धणीआणी तं था।" इत्यादि वचन साभली मदनरेखा कहइ, 'जे सत्पुरुष छई, ते तउ परस्त्रीनउ नाम लेता संकाई, पछइ वांछा किम करई ? तु जोइ-न राजा पितानइ ठामि । जे वधू-ऊपरि अनुराग करइ, ते किसिउं लाज नथी ऊपजती? वली सगउ भाई जीवइ छइ, तेहनी पणि लाज नथी ? अथवा ए १. 'बय जयारव...पौर लोक सर्व ' सुधी पाठ K मां नथी. २. 'इम कहतां...पोलि ऊघडउ ।' पाठ Pu. मां नथी । ३. Pu. जिन धर्म पाली,
K. जिन धर्म पाली गृहस्थावासि ।
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