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________________ मेरुसुन्दरगणि-विरचित हिवइ कुलवधू अनइ दुश्वारिणीनउ अंतर कहइपर पुरिस सेविणीओ कुल-रमणीओ हवंति जइ लोए । ता वेसा-दासीणं पढमा रेहा कुलबहूसु ॥४९ व्याख्या :-जउ किमइ कुलवधू परपुरुषनी सेवा करइ तउ लोक-माहि जे वेश्या-दासी, जे सदाइ परपुरुषनी सेवा करइ, तेहनइ पणि कुलवधूनइ धुरि पहिलो रेखा हुई जोईइ । बिहुंनइ अंतर किसिउ ? जे वेश्या ते परपुरुषनो सेवा करती रहइ अनइ जे कुलवधू ते परपुरुषनी वांछा इ न करइ । इणइ क रणि कुलवधूइ पर पुरुषनउ संग सर्वथा वर्जिवउ । तुच्छा वि रमणि-जाई पसंसणिज्जा सुरासुर-नराण । विहिया महासईहिं काहिंचिय विमल-सीलाहिं ॥५० व्याख्या :-अति तोछडी अगंभीर, निंद्य इसी जे स्त्रीतणी जाति ते जाति किणिही एक लान कोडि-माहि एकि 'कुणिई स्त्रीइं महासतीइं विमल शीलनइ पालिवइ करी देवदानवनइ प्रशंसनीयवर्णनीय कीधी ।पणि प्राहइ स्त्रीनी जाति तोछडी-निंद्य सर्व विश्व-माहि कही। घणे प्रकारे निंद्य स्त्रीनी तुच्छ जाति हुइ । अथ कुणि कुणि शील पालिवइ करी स्त्रीनी जाति प्रशंसनीय कीधी ? ते दृष्टांत-पूर्वक कहइ निय सील-महामंतेण पबल-जलणं जलं कुणंतीए । सीलुग्घोसण-पडहो अज्ज वि रुणझुणइ सीयाए ॥५१ व्याख्या :-निज आपणउं शील पालिवा तणउं घोसणरूप जे पडह -वाजित्र ते अजी-आजसीम, जगत्रय-माहि रुणझुणायमान% प्रसिद्ध छइ। आज-सीम समस्त- लोक ऋषि इम कह-जउशीताना शीलनइ प्रमाणिई अग्निकुंड फीटी जलनउ कुंड पद्मसरोवर समान हउ । यदाकालि श्रीरामदेविई दशकंधर रावण हणिउ, शीता पाछो लोधी, तिवारइ शीलभंगनी शंका फेडिवा-भणी सुर, असुर, मनुष्य समक्ष खयरना अंगार भरी खाई, तेह-माहि शीता-माहिई धीज कराविउ । जिम शीताइ खाई-माहि झांप दोधी तिम शीलनइ प्रमाणिई अंगार फाटो पाणी थयां, विचालइ कर्णिका हुई, ते ऊपरि शीता जई बइठी । तिहां देवदेवतां जयजयारव करता शीलनु महिमा वखाणिवा लागा । इत्यादि गाथानउ अर्थ हउ । विस्तरार्थ कथाहत जाणिव । ते शीता चरित्र आगलि कहीसिइ । वली शील पालिवानउ महिमा विशेष कहइ चालणि धरिय-जलाए संघ-मुहुग्घाडणं कयं जीए । चंपा-दारुग्घाडण-मिसेण नंदउ सुभद्दा सा ॥५२ ।। व्याख्या :-शीलनई प्रमाणिई, काचा सूत्रनइ तांतणई बांधी चालणीइ करी कूआ-माहिशिकलं पाणी काढी, देवताए दीधा छइ जे चंपानगरीनां च्यारि बारणां, तेह-माहि त्रिणि बारणा पाणीसिङ छांटी ऊघाड्या । वली एक बारणउं अणऊघाडिउं राखी कहिउं, 'जउ को स्त्री शुद्ध शोलवंत हई ते बार ऊघाडिज्यो ।' इणि प्रकारिई पोलिना बार ऊघाडिवई करी जिणि संघनउं मख ऊघाडिउं, जिनशासन दीपाविउ, प्रभावना कधी ते सुभद्रा स्त्री चिरकाल-सीम नांदउ । गाथानउ अर्थ हठ । विशेष कथा-ढूंतउ जाणिवउ । ते कथा कहीइ १.Pu.L. कुणहि २. K.-लगइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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