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मेरुसुन्दरगणि-विरचित इसिई वंकचूल गोहनइ प्रयोगिइ जिहां राणी छइ तिहां आविउ । राणीइ वंकचूल दीठउ । ते वंकचूलनु रूप देखी राणी व्यामोही हुती प्रार्थना करिवा लागी, 'अहो पुरुष ! ऊकरडउ खग तां जिम रत्नराशिनी प्राप्ति सुखदायक तिम तू आज चोरीइं पइठउ अनइ माहरी प्राप्ति तुझनइ हुई । तु इम जाणीइ देव तुझनइ तूठउ । पणि कहिनइ तूं कउण ?' वंकचूल कहा, 'हूं चोर ।' 'तु स्या-भणी आविउ छइ ' ते कहइ, 'हू मणि-रत्न-धन लेवा-भणो आविउ छउं ।' तिसिई राणी कहइ, 'जु माहरी वात मानइ तु ताहरा मनोरथ पूरवउ ।' वंकचूल पूछइ, 'सुभगि ! तूं कउण ?' ते कहिइ, 'हूं राजानी पट्टराणी । जेहन तूस तेहनई राज आपउं, जेहनइ रूस तेहनउ जीव लिउँ ।' तु वंकचूल कहइ, 'तू तु माहरी' माता, इणि कारणि शास्त्र इम बोलिइ छइ
राजपत्नी गुरोपत्नी मित्रपत्नी तथैव च ।
पत्नीमाता स्वमाता च पंचैते मातरः स्मृताः ॥१ वली राणो कहइ, 'माहर वचन मानि ।' वंकचूल कहइ, 'तु तू माता । ए वात न हुइ ।' तु राणी कहइ, 'हिवइ माहर' कीघउं जोए ।' पछइ राणोइ आपणां वस्त्र फाडयां, अंग विलूरी पोकार कीघउ, 'अहो सुभटो ! धाउ धाउ । माहि कोई चोर पारदारिक पइठउ।' तेतलइ सुभट 'हणि हणि' 'मारि मारि' करतां धाया । हिवइ राजाई बारणइ ऊभां ए वात सांभली आश्चर्यमइ हुउ छइ । एहवइ सुभट जे बारणइ आव्या तेहनइ राजाई कहिउ, 'एहनई कोइ घाउ म देज्यो, प्रभाति साही मुझ कन्हइ आणिज्यो ।' पछइ तलार घर-माहि आव्या । राणीइ कहिउं, 'ए ते पारदारिक। झालउ, बांधउ, मारउ।' पछइ तलारे वकचूल झाली राखी मूकि। हिवइ राना स्त्रीना चरित्र मन-माहि विचारइ, 'नोउ एहनइ एवडउं तोछडपणउं ।' अनइ वंकचूलना गुण स्मरब, "जोउनइ एवडाइं वचन कह्यां, पणि लगारइ मन मेदिउं नहीं । तु कोई ए उत्तम पुरुष छह ।' प्रमाति राजा सभा-माहि आवी बईठउ, चोर अणावी पूछिउं, 'तू' कउण ? स्या-भणी
आन्यउ ? वंकचूल कहइ, 'हूं चारी-भणी आविउ हूंतउ पणि राणीइ दीठउ । राणी बीहतीई पोकार कीधउ अनइ हूं झलाणउ।' राजाई चीतविउं, 'एहनी धीरिमा जोउ - आपणउ दोष लीघउ, पणि राणीनउ दोष लगारइ मनि नाणिउ । तु ए माहरइ पुत्रनइ ठामि ।' इम चौतवी राजाई वंकचूलनी परीक्षा-भणी कहिउं, ‘ए राणीनइ तूं लिइ, मइ तुझनइ आपी ।' तिवारइ वकचूल कहइ, 'ए माहरी माता ।' पछइ राजा रीसाण उ तलारनह कहइ, 'जाउ सूलीई दिउ, दुर्मरणिइं मारिज्यो ।' तु ही वकचूल राणीनइ पडिवजइ नही। तिसिईतलार वकचूल नइ लेई नीकल्या । सूली-समीप आणिउ तु ही न मानइ।
पछइ राजाई वंकचूलनउ सत्त्व जाणी, पुत्रपणइ पडिवजी, युवराज-पदवी दीधी। वंकचूलइ बहिन-भार्या तेडावी। वारू सात भूमिनउ आवास दीधउ । तिहां आपणा कुटुंब-सहित सुख भोगवइ । मन-माहि चीतवइ वली जउ, 'एकवार गुरु मिलई तु जन्म सफल थाइ।' इम विमासतां अनेरइ दिवसि गुरु आव्या । भावपूर्वक वंकचूल तिहां जई गुरुनइ प्रणाम करइ । गुरु पणि धर्म-उपदेश दिई । पछइ वंकचूलिई श्री-सम्यक्त्व पडिवजिउं, गीतार्थ श्रावक हूउ।
इसिइ ऊजेणी-समीपि सालिग्राम । तिहां जिनदास श्रावक । ते साथि वकचूलनइ मित्राचार हउ । इसिइ भीम नामा चरड देसनइ संतापइ । तेहनी राव लोके आवी किधी। तेतलइ राजाई प्रयाण-भंभा देवरावी । राजा आपणि नीकलिउ। एहवइ वंकचूल राजानइ प्रणाम करी कहा, 'स्वामी ! कीडी-ऊपरि तुम्हारी सी कटकी ? ए वितू हूं करिसु ।' पछइ राजाई
१. K. मांहरइ ।
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