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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
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वंकचूल घरि आवी कुणिहि गामि हेरू करी, सर्व भील एकठा मेलो, घाडइ चालिउ । तेतलई तीणइ गामि सुद्धि हुई ते गाम ऊचलिउ । वंकचूल तिहां गयउ पछइ सर्व भील पाछा वलिया। भूख्या तरस्या वन एक-माहि जइ केई सुता, के बइठा, केई क्नफल सोधिवा लागा। इसिइ विषनइ वृक्षि फल लागां देखी सघले ते फल लेई वंकचूलआगलि आणी मुंक्यां । तिवारई वकचूल पूछा, 'एड्नउ सिउं नाम ?' ते कहई, 'अम्हे न जाण' तिवारई गुरु-दत्त नीम 'चीति आविइ कहइ, 'जां एहनउ नाम न कहउ ता मुझनई खाइवा नीम छह'। पछद सेवक कहई, 'स्वामी ! नीम पछइ पालिज्यो । आज भूख्या, सिउं नीम ? तुहइ वकचूल न मानइ । पछइ सर्व सेवक एकांति जई सर्व फल खाई सूता । एक सेवक भक्ति-लगइ चींतवइ, 'आज आपणउ स्वामी भूखिउ तु किम फल मुखि घात ?' तेह.भणी ते रहिउ । रात्रि प्रहर एक गई तेतलई कुमार ऊठी सेवकनइ कहइ, 'ए सर्व ऊठाडि, जिम घरि जईइ।' जेतलइ सेवक ऊठाडइ तेतलइ देखइ, सिउ ? सघलाइ प्राण-हूंता मकाणा । आवी वंकचूलनइ कहिउं, 'ए तु सर्व मूआ दीसई छई।।
तेतला वकचूल सेवकना मरणनू दुक्ख अनइ आपणउ नीम फलिउं ते हर्ष धरतउ खड्ग लेई घरि आविउ । एहवइ घरना कमाड दीधां दीठां । कमाडनइ छिद्रि माहि जोइ तु भायाँ परुष-सहित सुती दीठी । रीस ऊपनीइ, खड्ग काढी, उपरि चडी घर-माहि आविउ । बिहनइ एका खांडिइ करी हणिसु इम चौतवी जेतलइ घाय मू कइ तेतलई नीम चीति आविउ । पद्ध सात पग पाछउ उसरिउ । तेतलइ खांडउ भारवटि लागउं, खटकु हउ । बहिन वंकचूला जागी हती कहइ, 'जीवउ वकचूल ।' एहवउ बहिननउ स्वर ओलखी खड़ग पाछउं साती प्रछिवा लागउ, 'हे बहिनि ! पुरुषनइ वेषि तूं कांइ सूती ?' तेतलइ बहिन बोली, 'सांभलि भाइ | जिवारइ तूं धाडइ चडिउ तिवारइ केडिइ पेखणीया आव्या । उसर मांडिउ । मइ चीतविउ-जउ इम कहीसिंह वकचूल घरि नथो तु ए अनेथि जई कहिसिइ ‘पालि सुनी छइ ।' इम कही रखे कोई आवी लूसइ, तेह-भणी ताहरां वस्त्र पहिरी सभा-माहि रातिइ हूँ जई बइठी। वडी वार तिहां बइसी दान देई, पेखणीआ विसा । असुर-लगइ ऊतावली ईणइ जि वेसिह भउजाई-कन्हलि आवी सूती ।' इम सांभली वकचूल कहइ, 'ते गुरु धन्य जीणे मानह पहवा नीम दीधा । मुझनई बि नीम तु फल्या । एकणि नीमि तां जीवतु ऊगरिउ जे अजाणिउ फल न खाधडं । बीजइ नीमि आज तां बहिननी हत्या अनइ पत्नीनी हत्या-हूं तउ छूटिउ । ए महातमा आप नइ परनइ तारक छइ । मई तां महात्मानी भगति लगारइ न कीधी।'
इम वात करतां केतला एक दिन पालि-माहि रही विमासिउं, 'भील तु सर्व मूभा । हिवइ रखे मुझनइ कोई हणई ।' एह-भणी पालि मूकी ऊजेणीई आवी कोई एक श्रेष्टिनइ घरि बहिन नदु भार्या मूकी, आपण चोरी करिवा लागउ । इम करतां घणा दिन गया । एकदा प्रस्तावि चीतवह. 'जे बापडां दुबला नीठ रुली पेट भरई छई तेहना धन लेतां मुझनइ महा पाप लागड छह । पणि जउ चोरी कीजइ तु राजानइ घरि भली, कांई कइ डील दीजइ कइ अधिक जननी राशि आणीइ ।' इम चीतवी वरसालइ गोह एक मोटी झाली सीखवो । पछइ तेहनइ पछि मिलगी रात्रिनइ समइ राजानइ घरि चोरीइ पइठउ। एहवइ राजा राणीनइ माहोमाहि प्रेम-स्नेह- अपनाउ । राजा रीसावी अनेथि घर-माहि जई नष्ट-चर्याइ राणीनां कउतिग जोइ छह ।
१. Pu. 'चीतविउ K. संभारिउ । २. K. साद ।
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