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मेरुसुन्दरगणि-विरचित जो अन्नायरओ वि हु निव-भज्जा-पत्थिओ वि न हु खुद्धो ।
सील-निअमाणुकूलो स वंकचूलो गिही जयउ ॥४६ ।
व्याख्या :- ते वंचल राजपत्र जयवंतउ हह। छह जे केहवउ १ अघाई पर-द्रव्याउ हरणहार अनइ नृपराजानी भार्याइ प्रार्थिक हूंतउ पणि क्षोभिउ नहीं'। वली केवउ छइ ? 'शोलभंग करिवानउ नीम, राजपत्नो माता समान ।' इसिउ अभिग्रह पालिवा भणी अनुकूल = सावधान छइ । इति गाथार्थः । विशेष कथा-हूंतउ जाणिवउं । हिवइ ते वंकच्लनी कथा कहीइ
[ २२. वंकचूल-कथा ]
रथनूपुर नगर, तिहां विमलयश राजा, सुमंगला पट्टगणी, तेहनी खिइ वकचल पुत्र, वंकचूला पुत्री हुई । ऋमिई यौवनवस्थाई आव्या । अवसरि राजानी पुत्री रोहणी कोई एक कुमरनइ परिणावी, पणि वकचूला लहुडपण-लगइ विधवा हुइ । इसिइ राजा उरमाई भाई लघ. तेहनइ राज देवानी मनसा करवा लागउ । तिवारइ वंकचूलिइं ते वात सांसही न सकी। तेह-भणी राजानइ अणकहिई जि वंकचूल नौकलिवा लागउ । तेतलइ भाईना स्नेह लगइ वंकचूला पणि मोकली। पछह वकचल पंथ अवगाहतइ पालि-माहि आविउ । तिहां भीले आकारेगित-चेष्टाई राजकुमार जाणी, प्रणाम करी, विवानउं कारण पूछिउं। पछइ कुमारि सर्व वृत्तांत कहिलं। पह ते सर्व भील प्रणाम करी कहई, 'स्वामिन ! अम्हारइ स्वामी हूंत उ ते परोक्ष हुउ । हिवः स्वामी तुम्हे थाउ ।' इम कही अभिषेक कीधउ । पछइ पालिनउ अधिपति वंकचूल हूउ ।
इसिइं श्री चन्द्रयशसूरि पृथ्वो-माहि विहार करतां, अनेक जोवनई प्रतिबोध देतां आवह छह । एहवइ वरसालउ आविउ। तिहां धुरि आविउ आसाढ, अंतर गण संबाढ, काटीई लोह, बांभतणा निरोह, छासि खाटी थाइ, माटी व्याइ, पाणी भाभलीइ, गउडो गूजरी'वर्ण सांभल इं, रात्रि अंधारी, लवइ तिमरी, ऊगतउ स्वच्छ, पश्चिम दिसिइ मच्छ, दिसि अंधार घोर, नाचई पंचविध मोर, पहिलउ सूसूआट, लोकनउ कूकूआट, विसमी छांट, भूमि कलहाट, परनाल ख ठहलई, नेत्र तडतडई, खोलडां खडहडई, क्यारा गाहीइं, दंताल वाहीइं, वणसती वस्तु राखीइं, भीजता घरि आवीइंएहवउ वर्षाकाल आविउ जाणो आचार्य पालि माहि आव्या । तिहां वंकचूल-कन्हइ उपाश्रय मागिउ । तिवारइ वंकचूल कहह, 'जउ धर्मनउ उपदेस कहिनइ न दिउ तु रहउ । काई अम्हा२६ तु चोरी-वंच-द्रोह-पाखइ निर्वाह न पडइ। चोरी जि अम्हारइ आजीविका । तेह-भणी तुम्हे धर्मकथा न कहिवी ।' पछइ आचार्य वचन मा ने। तिहां च्यारि मास धर्मध्यान करतां, संयम पालतां, सुखइ रहो, वकचूलनइ कही वषोंकालनइ प्रांति चालिवा लागा ।
तेतलइ वकचूल खड्ड सखायत करी गुरुनइ संप्रेडिवा-भणी आपणी सीम तांई आविउ । पछइ गुरुनइ कहिउं, 'एतला आधो पारकी सीम, मइ अवाइ नही । तेतलइ गुरु पारकी सीम-माहि ऊभा रही वंचूलनइ कहइ, 'अहो क्षत्रिय कुमार | हिव कांई धर्म कहीइ ।' तिवारइ वकचूल कहइ, 'जुकाइ मई पलहते कहउ।' गुरु कहई, जिवारई जीव-वध करइ तिवारइ सात पग पाछउ उसरो घाउ देज्ये। एक ए नीम १, बीजउ जे फलनउ नाम न जाणइ ते फल म खाएसि २, त्रीजउ राजानी पट्टराशी मातासमान गणिजे ३, चउथउ काग-मांसनउ नीम ४।' ए च्यारि नीम गुरे दीधा । वकचूल 'वह ति' करी नीम पडिवज्या । गुरे विहार कीधउ ।
१. Pu. L. शोभिउ नहीं चूकउ नही । २. राग । ३. K. हुई ।
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