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शोलोपदेशमाला - बालावबोध
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विद्या सीझइ ।' पछइ एका वर्षाकालि आवि हूंतइ गाई-भई सि चारिवा गयउ । तेतलई आडी महापूरि नदी आवी, गाईभईसि तरी पइलइ पारि गई । सुभग उलिइ तटि रहिउ atras, 'मुझन तां आकाशगामिनी विद्या आवडइ छह, आज परीक्षा जोड । इम चोंतवी ऊंची भूमिकार चडी 'नमो अरिहंताणं' कही झांप दीधी, तेतलइ पाधरउ नदी -माहि पडिउ । तलइ खयरन खूटउ हूंतउ, तेणइ पेट व घाणउं । नवकारनइ ध्यानि मरी अर्हदासीनी कूखिई अवतार लीघउ । ते गर्भनइ प्रमाणि धर्ममय डोहला ऊपनई, अनइ श्रेष्ठि सर्व डोहला प्रवई । इम पूरे दिवसे पुत्र जन्मउ, ते सर्वांग सुंदर देखी सुदर्शन नाम दीघउ । मउडइ मउडइ कल्पवेलिनी परिहं वाधवा लागउ । सघलीइ कला अभ्यसी, क्रमिदं यौवन पामिउ । पिताई मनोरमा कन्या परिणाबिउ | पंच प्रकारि विषयसुख अनुभवतां सुगुरुनइ योगि परस्त्रीनउ नेम लीघउ । हिव तेह जि नगर-माहि कपिलनामा पुरोहित वसइ । ते साथिई सुदर्शननह प्रीति ऊपनी । अनेक श्लोक-कथा- विनोद करतां दिवस जाइ । एकदा कपिलनी भार्या कपिलनई पूछइ, 'स्वामिन ! सर्व घरना काम की तुम्हे रात्रि-दिन किहां रहउ छउ ?" तिवारइ कपिल कपिलानइ कहइ, 'ऋषभदासन पुत्र सुदर्शन, ते साथि माहरइ मित्राचार छइ । तेहनी संगति हूं मूकी न सकउं । ' ए वात सांभली कपिला सुदर्शन देखिवा-भणी मनसा करइ । एकदा राजानइ आदेसि कपिल ग्रामांतरि गयउ अनइ अवसर लही कपिला सुदर्शननइ घरि आवी । मित्रनी पत्नी -भणी सुदशनि बहुमान आगता - स्वागत की उं । तेतलइ कपिला सुदर्शनन रूप जोती कामनी वाही इस्या वचन कपटमइ बोलाइ, 'अहो सुदर्शन ! तुम्हारा मित्रनइ. शरीरि कांइ असुख छइ । तुम्हे तु पूछना इ नावउ । प्रीति किसी जे सुखि दुखि नावीइ ?' तिवारइ सुदर्शन मित्रनी प्रीति मन-माहि धरत कपिलनइ घरि गयउ । पूछइ, 'मित्र कहां ?' कपिलाइ कहिउं, 'निवाइ सुतउ छइ ।' तिसिहघर माहि आवी पूछिउं, 'किहां छइ ?' तु वली कहइ, 'उरडा-माहि छइ ।' सुदर्शन जेतलई उरडामाहि आवइ तेतलइ कपिलाइ बार दीघां । तिवारइ सुदर्शनइ जाणिउं जु, 'ए स्त्रीना कपट हुई ।' मनि चतवइ, ' स्युं थयउं ? माहरु मन किसिउं एहनइ पाडिसिइ ?' मेरु पर्वतनी परिइं छ ।' तिसिह कपिला अनेक हावभाव करती, कामना भाव देखाडती, नवनवा शृंगार करती, आलिंगन देती, अंगोपांग सर्व फरसती, घणाइ बोल बोलइ । पणि जिम महिषनइ शृंगि मसान डंक न लागइ, अभव्य नइ जिम जिननउ उपदेश न लागइ, तिम कपिलाना बोल सुदर्शन नह न लागईं । तिहां आपणि काउसग्गि रहिउ । वली जु बोलावइ तु कहइ, 'सुभगि ! मुझन पुरुषार्थपणु नथी । जोइ न ताहरे वचने तो पाषाण भेदीइ, तु मनुष्यनी केही वात ?" इत्यादि वचन सांभली सत्यवचन मन-माहि आणी पछइ बार उघाडी जावा दीघउ । जिम कोई घाडिनइ हाथि चडिउ हुइ अनइ छूटउ हूंतउ नासी जाइ तिम सुदर्शन नासी आपण घर आविउ । पछइ पारकइ घरि एकला जाइवानउ नीम लीघउं ।
हिवर एक दिवसि दधिवाहन राजा अंत:पुर - सहित, राजलोके परिवरिउ, सुदर्शन श्रेष्ठि पणि आणइ परिवारिइं परव रड, बीजाइ नमस्त लोक उद्यानवनि इंद्र - महोत्सव करवा-भणी जावा लागा । तिसिई अभया रागा सुबामनि बइठी कपिला सहित वन माहि जाती हूंती । एहवइ मार्गि सुदर्शननी भार्या मनोरमा पांचे पुत्रे परिवरी, रथि बइठी, पान आरोगती दीठी । तिवारइ कपिलाई १K पाडि छइ, 1 Pu एहनइ पाडि छ । २. Pu डस, L. डंस |
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