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२५ व्याख्या में कतिपय स्थल चिन्तनीय भी हैं, जैसे 'घर" शब्द की व्युत्पत्ति । घर शब्द 'हन् हिंसागत्योः' हन् धातु से बनाया है । धात्वर्थ हिंसा और गतिसे घर का तालमेल ही नहीं बैठता है। अतः यह व्युत्पत्ति विद्वच्चिन्त्य अवश्य है।
ऐसे ही हनेरन् घ च यह पाणिनीय सूत्र भी चिन्तनीय एवं शोधनीय है । वर्तमान में यह सूत्र पाणिनीय-व्याकरण में प्राप्त नहीं है । यह सूत्र किसी अन्य व्याकरण का हो
और टीकाकार को स्मरण पाणिनीय का रहा हो ! क्योंकि विचरणशील जैन मुनियों के लिए उस समय सन्दर्भ पुस्तकों को इतनी सुविधा हा कहां थी । अस्तु.
प्रतिपरिचय प्रस्तुत सम्पादन में टीका को तीन प्रतियों का और मूल की तीन हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग किया गया है । टीका की हस्त-प्रतियों का विवरण इस प्रकार है:---
१ प्रा०-यह प्रति राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, शाखा कार्यालय बीकानेर में, उपाध्याय जयचन्द्रजी गणि के संग्रह की है । ग्रन्थाङ्क ६५० है। साइज २५४१० सेन्टीमीटर है । पत्र संख्या २६ है और पंक्ति १७ एवं प्रतिपंक्ति अक्षर ५० है । प्रान्त में लेखन-पुष्पिका दी हुई है:
"सम्बत् १६५५ वर्षे श्रीमद् बृहत्खरतरगच्छे युगप्रधानभट्टारकप्रभुश्रीमच्छ्रीजिनचन्द्रसरिराजशिष्यवाचनाचार्यधुर्यश्रीधर्मनिधानगणिमिश्राणां शिष्यप्रशिष्यप्रतिशिष्याध्ययनार्थं श्रीज्ञानविमलोपाध्यायैः श्रीशिलोञ्छनाममालावृत्तिरियं प्रदत्ता वाच्यमाना चिरं. नन्दतु ॥" . अर्थात् टीका की रचना के एक वर्ष पश्चात् सं. १६५५ में टीकाकार के गुरु श्री ज्ञानविमलोपाध्याय ने खरतरगच्छाधीश युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि के शिष्य वाचनाचार्य श्री धर्मनिधानगणि को उनके शिष्य, प्रशिष्य एवं प्रतिशिष्यों के अध्ययनार्थ शिलोञ्छनाममाला टीका की प्रति प्रदान की। ...
यह प्रति सुवाच्य अक्षरों में लिखी हुई है। शुद्ध है एवं स्वयं टीकाकार श्रीवल्लभ द्वारा संशोधित है । प्रति के किनारे कीटविद्ध होने के कारण हाँसियों पर लिखे हुए कतिपय अक्षर नष्ट हो गये हैं ।
२. ज०-यह प्रति भी राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान शाखा कार्यालय बीकानेर में उपाध्याय श्रीजयचन्द्रजी गणि के संग्रह की ही है । ग्रन्थाङ्क ६५१ है । माप २६४११ से. मी. है। पत्र २६ हैं । और पंक्ति १६ तथा अक्षर ५० है । प्रान्त में लेखक-प्रशस्ति नहीं है, फिर भी अनुमानत: इसका लेखनकाल १७वीं शती का. अन्तिम चरण अथवा १८ वों शती का प्रथम चरण तो निश्चित ही है। पूर्वोक्त प्रा. संज्ञक प्रति की ही शुद्ध प्रतिलिपि प्रतीत होती है । दोनों प्रतियों में सामान्यतः कोई अन्तर नहीं है ।
१. देखें, पृ, ५३, २., पृ ५३,
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