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शास्त्रवार्तासमुच्चय
मूर्त (कर्मप्रकृति) से भी (अमूर्त) आत्मा का संबन्ध होना उसी प्रकार संभव है जैसे (मूर्त) घट से (अमूर्त) आकाश का । और (कर्मप्रकृति से संबन्ध के फलस्वरूप) आत्मा में शक्तिक्षय आदि का होना उसी प्रकार संभव है जैसे सुरापान आदि के फलस्वरूप ज्ञान में शक्तिक्षय आदि हुआ करता है।
टिप्पणी-आत्मा तथा 'कर्म' बीच संबन्ध की संभावना सिद्ध करने के लिए हरिभद्र प्रस्तुत कारिका में दो दूसरे दृष्टान्त हमारे सामने उपस्थित करते हैं एक मूर्त घट तथा अमूर्त आकाश के बीच संबन्ध का दृष्टान्त और दूसरा सुरापान आदि स्थूल शारीरिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप होने वाली ज्ञानहास आदि सूक्ष्म मानसिक प्रक्रियाओं का दृष्टान्त । इनमें से पहले दृष्टान्त को समझने के लिए हमें केवल यह स्मरण रखना होगा कि हरिभद्र की मान्यतानुसार घट एक मूर्त द्रव्य है तथा आकाश एक अमूर्त द्रव्य, उसी प्रकार जैसे कि उनकी मान्यतानुसार कर्म एक मूर्त द्रव्य है तथा आत्मा एक अमर्च द्रव्य । और प्रस्तुत दूसरे दृष्टान्त को प्रायः उसी प्रकार से समझना होगा जैसे कि पिछली कारिका का 'शरीर स्पर्श से उत्पन्न आत्म-अनुभूति' का दृष्टान्त ।
एवं प्रकृतिवादोऽपि विज्ञेयः सत्य एव हि । कपिलोक्तत्वतश्चैव दिव्यो हि स महामुनिः ॥२३७॥
इन कारणों से प्रकृतिवाद को भी एक सच्चा ही वाद माना जाना चाहिए-इसलिए भी कि इस बाद का प्रतिपादन कपिल ने किया है जो एक दैवी महर्षि हैं ।
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