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शास्त्रवार्तासमुच्चय
प्रस्तुत वादी के द्वारा सम्मानित प्राचीन आचार्यों ने अपने शास्त्र में कहा है : "जो व्यक्ति २५ तत्त्वों का ज्ञाता है वह मोक्ष प्राप्त करता है इसमें संदेह नहीं—फिर वह व्यक्ति चाहे किसी भी आश्रम में वर्तमान हो तथा वह चाहे जटाधारी हो, चाहे मुण्डित मस्तक, चाहे शिखाधारी" । इस प्रकार इन आचार्यों ने पुरुष को ही मोक्ष प्राप्त करने वाला माना है। लेकिन प्रस्तुत वादी की तर्कसरणी स्वीकार करने पर पुरुष द्वारा मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं लगती, अतएव सिद्ध होता है कि इस संबन्ध में कही गई उसकी सभी बातें अयुक्तिसंगत है।
टिप्पणी-प्रस्तुत कारिका में निर्दिष्ट २५ तत्त्व पहले ही गिनाए जा चुके हैं और निम्नलिखित हैं ।
१ प्रकृति, २ महत्, ३ अहंकार, ४-१४ ग्यारह इन्द्रियाँ, १५-१९ पाँच तन्मात्र, २०-२४ पाँच महाभूत, २५ पुरुष ।
अत्रापि पुरु षस्यान्ये मुक्तिमिच्छन्ति वादिनः ।
प्रकृतिं चापि सन्यायात् कर्मप्रकृतिमेव च ॥२३२॥
इस संबन्ध में भी कुछ दूसरे वादी पुरुष को ही मोक्ष प्राप्त करने वाला मानते हैं, और समुचित युक्तिमार्ग का अनुसरण करते हुए वे कहते हैं कि प्रकृति कर्म-प्रकृति का ही दूसरा नाम है ।
टिप्पणी प्रस्तुत कारिका में निर्दिष्ट वादी हैं जैन दार्शनिक, क्योंकि इन्होंने 'कर्म-प्रकृति' (= 'कर्म') के नाम से एक ऐसे तत्त्व की सत्ता स्वीकार की है जो जड़ है तथा आत्मा के बंध के लिए उत्तरदायी है उसी प्रकार जैसे कि सांख्य दार्शनिकों की 'प्रकृति' एक ऐसा तत्त्व है जो जड़ है तथा पुरुष के बंध के लिए उत्तरदायी है । लेकिन जैन दार्शनिकों की कर्मप्रकृति तथा सांख्य दार्शनिकों की प्रकृति के बीच एक महत्त्वपूर्ण भेद भी है जिसे ध्यान में रखना आवश्यक है। जैसा कि हम देख चुके हैं, सांख्यदर्शन की मान्यतानुसार समूचा जड़ जगत् (अर्थात् महत् से लेकर पाँच महाभूत तक के २३ तत्त्व) प्रकृति के रूपान्तरणमात्र हैं, इसके विपरीत, जैनदर्शन की कर्मप्रकृति (=कर्म-पुद्गल) जड़जगत् (=पुद्गल-जगत्) का एक अंश मात्र है जिसका अर्थ यह हुआ कि जैनदर्शन की मान्यतानुसार समूचे जड़जगत् को कर्मप्रकृति का रूपान्तरण मात्र नहीं कहा जा सकता ।
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