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________________ तीसरा स्तबक 'वैराग्य' शब्दों का अर्थ स्पष्ट है, 'ऐश्वर्य' शब्द का अर्थ है अणिमा, लघिमा महिमा, गरिमा आदि आठ विभूतियाँ (अर्थात् योगग्रन्थों में वर्णित अलौकिक क्षमताएँ), 'धर्म' शब्द का अर्थ है चरित्रगत कतिपय सद्गुणविशेष । अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ॥१९६॥ (और भी कहा गया है कि) यह अज्ञानी जीव अपने सुख-दुःख का स्वामी स्वयं नहीं अपितु वह ईश्वर की प्रेरणा से स्वर्ग में जाता है अथवा नरक में ।। अन्ये त्वभिदधत्यत्र वीतरागस्य भावतः । इत्थं प्रयोजनाभावात् कर्तृत्वं युज्यते कथम् ? ॥१९७॥ इस पर किन्हीं दूसरे वादियों की आपत्ति है जब उक्त रूप से (अर्थात् उक्त प्रेरणा प्रदान से) ईश्वर का जो स्वतः वीतराग है-कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता तब उसको (प्राणियों के क्रियाकलाप का) वास्तविक कर्ता मानना कहाँ तक युक्तिसंगत है। नरकादिफले कांश्चित् कांश्चित् स्वर्गादिसाधने । कर्मणि प्रेरयत्याशु स जन्तून् केन हेतुना ? ॥१९८॥ प्रश्न उठता है कि ईश्वर क्यों किन्हीं प्राणियों को ऐसे काम करने की प्रेरणा देता है जिनका परिणाम स्वर्गप्राप्ति होता है और किन्हीं को ऐसे काम करने की जिनका परिणाम नरकप्राप्ति होता है । स्वयमेव प्रवर्तन्ते सत्त्वाश्चेत् चित्रकर्मणि ।। निरर्थकमिहेशस्य कर्तृत्वं गीयते कथम् ? ॥१९९॥ और यदि कहा जाए कि जगत् के प्राणी अनेकानेक प्रकार की क्रियाओं में स्वेच्छा से प्रवृत्त होते हैं तो प्रश्न उठता है कि तब बेकार ही यह गीत क्यों गाया जाय कि प्राणियों के क्रियाकलाप का कर्ता ईश्वर है । फलं ददाति चेत् सर्वं तत् तेनेह प्रचोदितम् ।। अफले पूर्वदोषः स्यात् सफले भक्तिमात्रता ॥२००॥ कहा जा सकता है कि प्राणियों के वे वे काम ईश्वर की प्रेरणा से उन उन फलों को देने वाले सिद्ध होते हैं, लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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