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शास्त्रवार्तासमुच्चय
कालः पचति भूतानि कालः संहरति प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥१६६॥
काल भौतिक वस्तुओं को (अथवा प्राणियों को) परिपक्व अवस्था में पहुँचाता है, काल प्राणियों का संहार करता है, काल सबके सोते रहने पर भी जागता है, काल की सीमा का लाँघना किसी के लिए भी संभव नहीं ।
किञ्च कालाहते नैव मुद्गपक्तिरपीष्यते । स्थाल्यादिसंनिधानेऽपि ततः कालादसौ मता ॥१६७॥
दूसरे हम देखते हैं कि अनुकूल काल आये बिना मूंग तक नहीं पकती भले ही थाली आदि (सभी कारणसामग्री) उपस्थित क्यों न हो; अत: यह सिद्ध हुआ कि मूंग का यह पकना काल के ही कारण हैं ।
टिप्पणी-देखा जा सकता है कि अपने मत के समर्थन में कालवादी इस वस्तुस्थिति को आधार बना रहा है कि, मँग पकाने की क्रिया कुछ काल लेकर ही सम्पन्न हो पाती है, तत्काल नहीं ।
कालाभावे च गर्भादि सर्वं स्यादव्यवस्थया ।
परेष्टहेतुसद्भावमात्रादेव तदुद्भवात् ॥१६८॥
काल को जगत् की घटनाओं का असाधारण कारण व मानने पर गर्भप्रवेश आदि (अर्थात् गर्भप्रवेश, बाल्यावस्थाप्राप्ति आदि) घटनाएँ, अनियमपूर्वक (वस्तुतः एक साथ) घटनी चाहिए, क्योंकि उस दशा में इन घटनाओं का जन्म उस सामग्री की सहायता से हो जाना चाहिए जिसे हमारे विरोधियों द्वारा इन घटनाओंका कारण माना जा रहा है (और जो अपने स्थान पर उपस्थित रही हैं)।
न स्वभावातिरेकेण गर्भबालशभादिकम् ।
यत् किञ्चिज्जायते लोके तदसौ कारणं किल ॥१६९॥
(स्वभाववादियों का कहना है :) एक प्राणी का मातृगर्भ में प्रवेश करना, बाल्यावस्था प्राप्त करना, शुभ आदि प्रकार के अनुभवों का भोग करना—इनमें से कोई भी घटना स्वभाव बिना नहीं घट सकती, अवश्य स्वभाव ही सब घटनाओं का कारण है ।
सर्वभावाः स्वभावेन स्वस्वभावे तथा तथा । वर्त्तन्तेऽथ निवर्त्तन्ते कामचारपराङ्मुखाः ॥१७०॥
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