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________________ पहला स्तबक उनकी उत्पत्ति मातृगर्भ से न होकर पसीने से होती है । न तथाभाविनं हेतुमन्तरेणोपजायते । किञ्चिन्नश्यति नैकान्ताद् यथाऽऽह व्यासमहर्षिः ॥५॥ कोई भी वस्तु एक ऐसे कारण के अभाव में उत्पन्न नहीं होती जिसकी एक अवस्थाविशेषमात्र वह वस्तु है; और नहीं कोई वस्तु सर्वथा विनष्ट होती है। जैसा कि महर्षिव्यास का कहना है : टिप्पणी-पहले-अर्थात् कारिका ५० की टिप्पणी में कहा जा चुका है कि हरिभद्र के मतानुसार प्रत्येक कार्य का कोई उपादानकारण होना चाहिए-अर्थात् कोई ऐसा कारण जिसकी कि एक अवस्था विशेषमात्र यह कार्य है और क्योंकि यह उपादानकारण इस कार्य के नष्ट हो जाने पर भी अस्तित्व में बना रहता है इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि यह कार्य सर्वथा नष्ट नहीं हुआ । नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥७६॥ जो वस्तु सत्ताशील नहीं उसका कभी जन्म नहीं होता और जो वस्तु सत्ताशील है उसका कभी नाश नहीं होता, इन दोनों ही बातों से संबंधित नियम को तत्त्वदर्शियों ने जान लिया है। टिप्पणी-प्रस्तुत कारिका गीता के दूसरे अध्याय का सोलहवाँ श्लोक है। इसमें निर्दिष्ट दोनों विरोधी वादों का विस्तृत खंडन हमें हरिभद्र की क्षणिकवाद संबंधी आगामी चर्चा में मिलेगा । नाभावो भावमाप्नोति शशश्रृङ्गे तथाऽगतेः । भावो नाभावमेतीह दीपश्चेन्न स सर्वथा ॥७७॥ जो वस्तु सत्ताशील नहीं उसका जन्म नहीं होता, क्योंकि हम देखते हैं कि शशश्रृङ्ग का जन्म नहीं होता । और जो वस्तु सत्ताशील है उसका नाश नहीं होता, यदि कहा जाए कि दीपक (अर्थात् दीपक का प्रकाश) एक सत्ताशील वस्तु है फिर भी उसका नाश होता है तो हमारा उत्तर होगा कि दीपक सर्वथा विनष्ट नहीं होता । टिप्पणी-हरिभद्र के मतानुसार जब दीपक बुझता है तो उसका प्रकाश सर्वथा नष्ट नहीं होता अपितु वह अंधकार का रूप धारण कर लेता है (जबकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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