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टिप्पणी- हरिभद्र का आशय यह है कि यदि लावण्य मृत शरीर में नहीं पाया जाता तो इसका अर्थ यह हुआ कि जीवित शरीर में लावण्य के पाए जाने का कारण एक शरीरातिरिक्त तत्त्व है ( और उसी तत्त्व का नाम आत्मा है ) । न प्राणादिरसौ मानं किं तद्भावेऽपि तुल्यता । तदभावादभावश्चेदात्माभावे न का प्रमा ॥६८॥
पहला स्तबक
पूछा जा सकता है कि यह शरीरातिरिक्त तत्त्व प्राण आदि नहीं इस मान्यता के पक्ष में क्या प्रमाण; उत्तर में हम पूछेंगे कि यह तत्त्व प्राण आदि ही है इस मान्यता के पक्ष में क्या प्रमाण ? । यदि कहा जाए कि प्राण आदि के अभाव में चेतना का अभाव पाया जाता है तो हम पूछेंगे कि आत्मा के अभाव में चेतना का अभाव पाया जाता है इस मान्यता के विरुद्ध क्या प्रमाण ? | तेन तद्भावभावित्वं न भूयो नलिकादिना । संपादितेऽप्येतत्सिद्धेः सोऽन्य एवेति चेद् न तत् ॥६९॥
वायुसामान्यसंसिद्धेस्तत्स्वभाव: स नेति चेत् । अत्रापि न प्रमाणं वश्चैतन्योत्पत्तिरेव चेत् ॥७०॥
न तस्यामेव संदेहात् तवायं केन नेति चेत् । तत्तत्स्वरूपभावेन तु भावः कथं नु चेत् ॥ ७१ ॥ तद्वैलक्षण्यसंवित्तेः मातृचैतन्यजे ह्ययम् । सुते तस्मिन्न दोषः स्यान्न न भावेऽस्य मातरि ॥७२॥ न च संस्वेदजाद्येषु मात्रभावेन तद् भवेत् । प्रदीपज्ञातमप्यत्र निमित्तत्वान्न बाधकम् ॥७३॥
इत्थं न तदुपादानं युज्यते तत् कथंचन । अन्योपादानभावे च तदेवात्मा प्रसज्यते ॥ ७४ ॥
कहा जा सकता है कि प्राण आदि की उपस्थिति में चेतना उपस्थित होती है यही बात उक्त मान्यता के ( अर्थात् इस मान्यता के कि आत्मा के अभाव में चेतना का अभाव पाया जाता है) विरुद्ध प्रमाण है, लेकिन ऐसा कहना ठीक नहीं, क्योंकि नली आदि की सहायता से मृत शरीर में वायु उत्पन्न कर देने
१. क का पाठ : तत् तत्सर्वरूप ।
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