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पहला स्तबक
पञ्चमस्यापि भूतस्य तेभ्योऽसत्त्वाविशेषतः ।
भवेदुत्पत्तिरेवं च तत्त्वसंख्या न युज्यते ॥४७॥
(उदाहरण के लिए), तब तो एक पाँचवें भूत का जन्म भी (भूतवादी द्वारा स्वीकृत चार) भूतों से हुआ माना जा सकेगा यद्यपि इस पाँचवें भूत का अभाव इन (चार) भूतों में उसी प्रकार है जैसे चेतना का; और उस दशा में भूतवादी की अभीष्ट तत्त्वसंख्या (अर्थात् चार) युक्तिसंगत नहीं ठहरेगी ।
न तज्जननस्वभावाश्चेत् तेऽत्र मानं न विद्यते । स्थूलत्वोत्पाद इष्टश्चेत् तत्सदभावेऽप्यसौ समः ॥४८॥
कहा जा सकता है कि चार भूतों का यह स्वभाव ही नहीं कि वे किसी पाँचवें भूत को जन्म दें, लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि इस वचन के पक्ष में कोई प्रमाण नहीं । भूतवादी द्वारा कहा जा सकता है कि स्थूलता का जन्म (अणुरूप भूतों से) होना उसे स्वयं अभीष्ट है (जबकि किसी पाँचवें भूत का जन्म चार भूतों से होना उसे अभीष्ट नहीं), लेकिन तब हम उत्तर देंगे कि इस स्थिति का निर्वाह तो यह मानने पर भी हो सकता है (वस्तुतः यह मानने पर ही होता है) कि स्थूलता अणुरूप भूतों में भी रहती है ।
न च मूर्त्ताणुसङ्घातभिन्न स्थूलत्वमित्यदः ।
तेषामेव तथाभावो न्याय्यं मानाविरोधतः ॥४९॥
फिर स्थूलता मूर्त (अर्थात् रूपवान) अणुओं के संघात (अर्थात् समूह) से भिन्न कोई वस्तु है भी नहीं; ऐसी दशा में स्थूलता को अणुओं की ही एक अवस्थाविशेष मानना उचित होगा और वह इसलिए कि इस मान्यता के विपक्ष में कोई प्रमाण नहीं ।
टिप्पणी-स्थूलता को मूर्त (अर्थात् रूपवान्) अणुओं की एक अवस्थाविशेष इसलिए कहा जा रहा है कि स्थूलता को एक दिखलाई पड़ने वाला धर्म होना चाहिए जब कि मूर्त (अर्थात् रूपवान्) पदार्थों का ही दिखलाई पड़ना संभव है । यहाँ 'रूप' शब्द का अर्थ है 'आँख को दिखलाई पड़ने वाला भौतिक गुण ।
भेदे तददलं यस्मात् कथं सद्भावमश्नुते ।। तदभावेऽपि तद्भावे सदा सर्वत्र वा भवेत् ॥५०॥
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