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________________ पहला स्तबक ग्रन्थ-प्रस्तावना : मोक्ष-साधनरूप से धर्म की उपादेयता प्रणम्य परमात्मानं वक्ष्यामि हितकाम्यया । सत्त्वानामल्पबुद्धीनां शास्त्रवार्तासमुच्चयम् ॥१॥ परमात्मा को प्रणाम करके तथा अल्पबुद्धि प्राणियों के हित की कामना से मैं शास्त्रीय चर्चाओं का संग्रह वाणीबद्ध कर रहा हूँ। टिप्पणी-परमात्मा शब्द का लोकप्रचलित अर्थ है ईश्वर जिसकी कल्पना विश्व के कर्ता, धर्ता, संहर्ता के रूप में की गई है। लेकिन जैन परंपरा इस प्रकार के ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखती; अतः प्रस्तुत कारिका में "परमात्मा' शब्द का अर्थ करना चाहिए 'वह महामानव जिसने अपने सत्प्रयत्नों के फलस्वरूप इसी जन्म में मोक्ष पाने का अधिकार प्राप्त कर लिया है' अथवा 'वह महामानव जिसने अपने सत्प्रयत्नों के फलस्वरूप मोक्ष पा ली है' । . यं श्रुत्वा सर्वशास्त्रेषु प्रायस्तत्त्वविनिश्चयः । जायते द्वेषशमनः स्वर्गसिद्धिसुखावहः ॥२॥ इस (चर्चासंग्रह) को सुनने के फलस्वरूप सभी शास्त्रों के संबन्ध में। यह प्रायः निश्चय किया जा सकेगा कि उनमें कौनसी बात कैसी है (अर्थात् उनमें कौनसी बात ग्रहण करने योग्य है तथा कौनसी नहीं) और इस प्रकार किया गया यह निश्चय होगा द्वेष को शान्त करने वाला तथा स्वर्ग एवं मोक्ष के सुख को प्राप्त कराने वाला ।। दुःखं पापात् सुखं धर्मात् सर्वशास्त्रेषु संस्थितिः ।। न कर्तव्यमतः पापं कर्तव्यो धर्मसंचयः ॥३॥ 'पाप से दुःख की प्राप्ति होती है और धर्म से सुख की' यह सभी शास्त्रों की निश्चित मान्यता है; अतः मनुष्य को चाहिए कि वह पाप न करे और धर्म का संचय करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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