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________________ ३० केवल विशदीकरण पाया जा सकेगा । फिर भी कुछ स्थल ऐसे अवश्य है जहाँ टिप्पणी की भाषा मूल - कारिका के आशय का समर्थन अथवा खण्डन ध्वनित करती प्रतीत होती है । अन्त में एक बात अनुवाद तथा टिप्पणियों की भाषा के संबंध में । टिप्पणियों की भाषा तो बोलचाल की हिन्दी से प्रायः उतनी ही दूर है जितनी इस प्रस्तावना की भाषा — अर्थात् उससे विशेष दूर नहीं । लेकिन अनुवाद की भाषा पर संस्कृत वाक्यरचना शैली की छाया अपेक्षाकृत अधिक गहरी है और उसके दो कारण हैं । कुछ स्थलों पर तो मूल के आशय को बोलचाल की हिन्दी के अधिक निकट लाना असंभव हो गया, लेकिन कुछ स्थलों पर संभव होते हुए भी ऐसा न करने का कारण यह है कि वहाँ हिन्दी अनुवाद का मूलसंस्कृत के साथ मिलान तभी सरल होता है जब अनुवाद की भाषा पर संस्कृत वाक्य रचना शैली की छाया विशेष गहरी हो । इस संबंध में 'भूत' (अथवा 'रूप' ) शब्द के एक ऐसे प्रयोग की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है जो एक सामान्य हिन्दी - पाठक के कानों को खटकेगा । उदाहरण के लिए यदि हम कहना चाहें "महात्मा गांधी, जो हमारे आदर्श हैं, ऐसा कभी न करते" तो हम यह भी कह सकते हैं कि "हमारे आदर्शभूत (अथवा आदर्शरूप) महात्मा गांधी ऐसा कभी न करते," लेकिन स्पष्ट ही यह दूसरा प्रयोग कानों को खटकने वाला हैं; फिर भी इस दूसरे प्रकार का प्रयोग प्रस्तुत अनुवाद में अनेकों बार हुआ है ( यद्यपि टिप्पणियों में एकाध बार ही), और इसका कारण यह है कि ऐसा न करने पर अनुवाद (अथवा टिप्पणी) की भाषा अनावश्यक रूप से जटिल हो जाती । फिर दो एक शब्द ऐसे हैं जो संस्कृत के दार्शनिक साहित्य में एक अर्थ देते हैं तथा बोलचाल की हिन्दी में कुछ दूसरा ही । उदाहरण के लिए, 'वासना' 'सन्तान' 'परिणाम' तथा 'रूप' शब्दों को ले लिया जाए । इन शब्दों के सामान्य अर्थ हम जानते हैं लेकिन संस्कृत के दार्शनिक साहित्य में 'वासना' शब्द का (जिसका एक पर्याय 'संस्कार' है) एक अर्थ है 'एक वर्तमान अनुभव द्वारा मन पर छोड़ी गई वह छाप जिसके कारण इस अनुभव का स्मरण आगे किसी समय संभव हो पाता है', 'सन्तान' शब्द का एक अर्थ है 'एक के तत्काल बाद दूसरी इस क्रम से होने वाली घटनाओं की परंपरा', 'परिणाम' शब्द का एक अर्थ है 'रूपान्तर', 'रूप' शब्द का एक अर्थ है 'रंग' । इन तथा इस प्रकार के प्रयोगों पर थोड़ा ध्यान दिया जाना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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