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________________ २९ शास्त्रवार्त्तासमुच्चय के प्रस्तुत संस्करण में कारिकाओं के मूल संस्कृत पाठ के अतिरिक्त उनका हिन्दी अनुवाद तथा उनके आशय को विशद करने वाली कुछेक टिप्पणियाँ भी दी जा रही हैं, अतः यहाँ स्वीकृत किए गए ग्रन्थपाठ, इस हिन्दी अनुवाद तथा इन टिप्पणियों के संबन्ध में दो बातें कह देना आवश्यक है । यहाँ स्वीकृत किए गए पाठ का आधार ग्रन्थ के दो मुद्रित संस्करण हैं—– एक (खरूप से निर्दिष्ट) जो विक्रमी संवत् १९७० में बम्बई से छपा है तथा जिसमें मूल कारिकाओं के साथ यशोविजयजी की टीका दी गई है और दूसरा (क रूप से निर्दिष्ट) जो विक्रमी संवत् १९८५ में बम्बई में छपा है तथा जिसमें मूल कारिकाओं के साथ हरिभद्र की अपनी टीका दी गई है । अधिकांश स्थलों पर मुद्रित अपपाठों को एक दूसरे संस्करण की सहायता से ठीक किया जा सकता है; (अपपाठों की कुल मिलाकर संख्या ख संस्करण में अपेक्षाकृत कम है) । कुछ स्थलों पर दोनों ही मुद्रित संस्करण अपपाठ देते हैं लेकिन उन्हें टीकाओं की सहायता से ठीक किया जा सकता है । इनके अतिरिक्त कुछ स्थल ऐसे भी हैं जहाँ दो टीकाकारों ने दो विभिन्न पाठों को स्वीकार किया है (तथा कुछ स्थलों पर यशोविजयजी ने एकाधिक पाठों को स्वीकार किया है), इस प्रकार के स्थलों का निर्देश यथावसर कर दिया गया है। ग्रन्थ का ग्यारह स्तबकों में विभाजन ख संस्करण में ही है, इसीलिए दूसरे से लेकर ग्यारहवें स्तबक तक की कारिकाओं में क्रमसंख्या दो प्रकार से दी गई है । कारिकाओं के हिन्दी अनुवाद में मूल के आशय को अक्षुण्ण रखने का प्रयास यथासंभव किया गया है और इसी उद्देश्य से अनेकों बार कुछ बातें अपनी ओर से जोड़नी पड़ी है जो कोष्ठकों के भीतर दी गई है । लेकिन कुछ स्थलों पर बिना कोष्ठक का अनुवाद - भाग भी कारिका के मूल शब्दों का अनुसरण करते हुए नहीं उसके मूल आशय का अनुसरण करते हुए चलता है; ( इस स्थलों पर में कही गई बात को अपनी ओर से जोड़ी गई बात से पृथक् करना असंभव हो गया है) । मूल टिप्पणियों का उद्देश्य अधिकांश स्थलों पर यही है कि मूल - कारिका क्रे आशय को सुगम बनाया जाए – फिर चाहे वह कारिका हरिभद्र का अपना मत व्यक्त कर रही हो या उनके किसी प्रतिद्वन्द्वी का । कहने का आशय यह है कि इन टिप्पणियों में मूल कारिका के आशय का समर्थन अथवा खंडन नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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