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से हम जान सकें कि अमुक वक्ता का अमुक वाक्य सच है अथवा झूठ ?' बौद्ध तार्किकों ने उत्तर दिया 'हाँ, इस प्रकार की कसौटियाँ निर्धारित करना हमारे लिए संभव अवश्य है लेकिन उनकी सहायता से होने वाला ज्ञान अनुमान की सहायता से हुआ ज्ञान माना जाना चाहिए न कि शब्द की सहायता से हुआ ज्ञान (अर्थात् 'शब्द' नाम वाले स्वतन्त्र प्रमाण की सहायता से हुआ ज्ञान) ।'
हरिभद्र की प्रस्तुत चर्चा में हम इन उत्तरों प्रत्युत्तरों की प्रतिध्वनि स्पष्ट सुन पाते हैं ।
चलते चलते संक्षेप में इस प्रश्न पर भी विचार कर लिया जाए कि शास्त्रवार्तासमुच्चय के सातवें स्तबक में जैन-दर्शन को मान्यताओं का समर्थनपुरःसर प्रतिपादन करते समय हरिभद्र ने क्या कहा है। इस स्तबक में हरिभद्र का मुख्य वक्तव्य यह है कि जगत् की प्रत्येक वस्तु को उत्पत्ति, विनाश एवं स्थिरता तीनों से सम्पन्न मानना तर्क का तकाजा है। यहाँ हरिभद्र अपने मन में दो विरोधी दार्शनिक मान्यताओं को लेकर चले हैं, एक वह जिसके अनुसार जगत् की वस्तुओं में उत्पत्ति तथा विनाश तो पाए जाते हैं लेकिन स्थिरता नहीं और दूसरी वह जिसके अनुसार जगत् में स्थिरता तो पाई जाती है लेकिन उत्पत्ति तथा विनाश नहीं । इनमें से पहली मान्यता स्पष्ट ही एक क्षणिकवादी दार्शनिक की मान्यता है लेकिन दूसरे के संबंध में कुछ कठिनाई है । हम देख चुके हैं हि हरिभद्र ने सांख्य दार्शनिक के 'प्रकृति' संबंधी सिद्धान्त की आलोचना इस समझ से की है जैसे मानों प्रकृति एक सर्वथा स्थिरताशाली पदार्थ हैअर्थात् एक ऐसा पदार्थ जो उत्पत्ति तथा विनाश की प्रक्रियाओं से सर्वथा शून्य है। हम यह भी इंगित कर चुके हैं कि हरिभद्र की यह समझ किसी गलतफहमी पर आधारित है लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि हरिभद्र की दृष्टि में सांख्यदर्शन एक सर्वथा स्थिरतावादी दर्शन है । जो भी हो, प्रस्तुत प्रसंग में ध्यान देने योग्य बात यह है कि शास्त्रवार्तासमुच्चय के सातवें स्तबक में हरिभद्र ने जैन दर्शन की मौलिक सत्ताशास्त्रीय मान्यताओं को इस प्रकार से उपस्थित करने का प्रयत्न किया है कि क्षणिकवाद तथा 'सर्वथा स्थिरतावाद' दोनों के ग्रहण करने योग्य तत्त्वों का ग्रहण हो जाए तथा त्याग करने योग्य तत्त्वों का त्याग । [कहने की आवश्यकता नहीं कि जैन-दर्शन की इसी मौलिक मान्यता को अपना स्थितिबिन्दु बनाकर हरिभद्र ने शास्त्रवार्तासमुच्चय के दूसरे—अर्थात् सातवें स्तबक से अतिरिक्त-स्थलों में सत्ताशास्त्रीय प्रश्नों की चर्चा की है ।]
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