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________________ (१) अपने अस्तित्व-क्षण के पश्चात् एक वस्तु सर्वथा अस्तित्व-शून्य हो जाया करती है । (२) अपने अस्तित्व-क्षण के पूर्व एक वस्तु सर्वथा अस्तित्व-शून्य हुआ करती है । (३) अनेक वस्तुएँ सम्मिलित भाव से एक कार्य को जन्म दिया करती हैं । (४) यद्यपि एक प्राणी की प्रत्येक मानसिक अवस्था क्षणिक है, लेकिन उसकी एक पूर्वकालीन मानसिक अवस्था उसकी एक उत्तर-कालीन मानसिक अवस्था को स्वजनित वासना (=संस्कार) द्वारा प्रभावित कर सकती है । (५) दो वस्तुओं के बीच कार्यकारणभाव जानने के लिए यह आवश्यक नहीं कि इन दो वस्तुओं को कोई एक ही ज्ञान अपना विषय बनाए (और वह इसलिए कि किन्हीं दो वस्तुओं को अपना विषय बनाना किसी एक ही ज्ञान के लिए संभव नहीं) । इसी प्रकार उक्त खंडन के छठे स्तबक में आए भाग में आलोचना का लक्ष्य निम्नलिखित बौद्ध मान्ताएँ हैं : (१) प्रत्येक वस्तु क्षणिक है, क्योंकि किसी वस्तु के नाश का कोई कारण संभव नहीं । (२) प्रत्येक वस्तु क्षणिक है, क्योंकि एक क्षणिक वस्तु ही अर्थक्रिया (कार्य-सिद्धि) में समर्थ है । (३) प्रत्येक वस्तु क्षणिक है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है । (४) प्रत्येक वस्तु क्षणिक है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अन्त में जाकर नष्ट होती पाई जाती है । - क्षणिकवाद के विरुद्ध उठाई गई हरिभद्र की आपत्तियों का सार दो शब्दों में रखा जा सकता है : क्षणिकवादी की मान्यता है कि दो वस्तुएँ यदि एक धर्म को लेकर भी एक-दूसरे से भिन्न हैं तो वे दो सर्वथा भिन्न वस्तुएँ हैं, जबकि हरिभद्र की मान्यता है कि दो वस्तुएँ जिस धर्म को लेकर एक-दूसरे से भिन्न हैं उस धर्म के नाते वे परस्पर भिन्न हैं तथा जिस धर्म को लेकर वे एक-दूसरे से अभिन्न हैं उस धर्म के नाते वे परस्पर अभिन्न हैं । इस संबंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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