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सातवाँ स्तबक
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टिप्पणी—प्रस्तुत कारिका में हरिभद्र इस आशंका का निवारण करते हैं कि जब जैनों की परम्परागत प्रमाणसूची में प्रत्यभिज्ञा को स्थान प्राप्त नहीं तब प्रत्यभिज्ञा की सहायता से सिद्ध किया गया कोई मत प्रामाणिक कैसे । हरिभद्र का कहना है कि जैनों के परम्परागत शास्त्रीय ग्रन्थों में पाए जाने वाले 'मति' नामक प्रमाण के वर्णन से पता चलता है कि प्रत्यभिज्ञा एक प्रकार का मतिज्ञान ही है।
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