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________________ सातवाँ स्तबक टिप्पणी-हरिभद्र का आशय यह है कि उत्पत्ति, विनाश तथा स्थिरता एक ही वस्तुस्थिति के तीन विभिन्न पहलू है । यह इसलिए कि एक वस्तु के उत्पन्न होते समय इस वस्तु का उपादानकारण ज्यों का त्यों बना रह रहा होता है, इस उपादानकारण में एक पुराने रूप का नाश हो रहा होता है तथा उसमें एक नए रूप की उत्पत्ति हो रही होती है । . इष्यते च परैर्मोहात् तत् क्षणस्थितिधर्मिणि । अभावेऽन्यतमस्यापि तत्र तत्त्वं न यद् भवेत् ॥४९१॥ . उत्पत्ति, विनाश तथा स्थिरता इन तीन धर्मों का एक ही वस्तु में एक साथ रहना हमारे (क्षणिकवादी) विरोधी को भी स्वीकार है-यद्यपि उसकी अज्ञानपूर्ण मान्यता है कि यह वस्तु क्षणिक हुआ करती है; यह इसलिए कि एक क्षणिक वस्तु यदि उत्पत्ति, विनाश तथा स्थिरता इन तीनों धर्मों से युक्त न हो तो वह क्षणिक ही नहीं हो सकती । टिप्पणी-हरिभद्र का आशय यह है कि क्षणिकवादी भी उत्पत्ति, विनाश तथा स्थिति तीनों की वास्तविकता को स्वीकार करता है-भले यह उसकी एक भ्रान्त धारणा हो कि स्थिति अनिवार्यतः क्षणिक हुआ करती है। भावमात्रं तदिष्टं चेत् उदित्थं निविशेषणम् । क्षणस्थितिस्वभावत्वं न ह्युत्पादव्ययौ विना ॥४९२॥ प्रस्तुत वादी कह सकता है कि वह एक वस्तु को अस्तित्वशील- भर मानता है । लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि तब तो यह वस्तु निर्विशेषणरूप से अस्तित्वशील हुई (अर्थात् तब वह अस्तित्वशील से अधिक कुछ नहीं हुई) जबकि किसी वस्तु का क्षणिक होना तब तक संभव नहीं जब तक उसकी उत्पत्ति तथा उसका नाश भी न होते हों । तदित्थंभूतमेवेति द्राग्नभस्तो न जातुचित् । भूत्वाऽभावश्च नाशोऽपि तदेवेति न लौकिकम् ॥४९३॥ कहा जा सकता है कि एक वस्तु को हमें इसी रूप में (अर्थात् क्षणिकरूप में ही) अस्तित्वशील मानना चाहिए; लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि यह वस्तु कहीं आकाश से तो टपका नहीं करती (अर्थात् यह वस्तु उत्पत्ति की प्रक्रिया से शून्य तो नहीं) । दूसरे, अस्तित्व में रहने के पश्चात् अस्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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