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________________ छठा स्तबक १४१ टिप्पणी- प्रस्तुत कारिका में क्षणिकवाद की समर्थक एक तीसरी युक्ति का खंडन प्रारम्भ होता है । क्षणिकवादी का कहना है कि प्रत्येक वस्तु क्षणिक है क्योंकि वह प्रतिक्षण नया रूप धारण करती है; इस पर हरिभद्र का उत्तर है कि जो वस्तु प्रतिक्षण नया रूप धारण करती है उसे क्षणिकता से सम्पन्न नहीं क्षणिकतासंवलित नित्यता से सम्पन्न माना जाना चाहिए । नार्थान्तरगमो यस्मात् सर्वथैव न चागमः । परिणामः प्रमासिद्धः इष्टश्च खलु पण्डितैः ॥४४५ ॥ न तो कोई वस्तु सर्वथा अस्तित्व खोया करती है और न वह सर्वथा नए सिरे से अस्तित्व में आया करती है; प्रमाणसिद्ध बात तो वस्तुओं का रूपरूपान्तरण है और ऐसे रूप-रूपान्तर की संभावना बुद्धिमानों को स्वीकार्य ही है । यच्चेदमुच्यते ब्रूमोऽतादवस्थ्यमनित्यताम् । एतत् तदेव न भवत्यतोऽन्यत्वे ध्रुवोऽन्वयः ॥४४६॥ प्रस्तुत वादी का कहना है कि उसके मतानुसार एक वस्तु का अपने पूर्व-रूप में न रहना ही उसकी अनित्यता (= क्षणिकता ) है लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि प्रस्तुत वादी के मतानुसार तो एक वस्तु का अपने पूर्वरूप में न रहने का अर्थ है उस वस्तु का (सर्वथा) अस्तित्व में न रहना और यदि इसका अर्थ कुछ अन्य है तो उसने निश्चय ही स्वीकार कर लिया कि एक वस्तु अपने रूप-रूपान्तरों के बीच एक ही बनी रह सकती है । तदेव' न भवत्येतत् तच्च न भवतीति च । विरुद्धं हन्त किंचान्यदादिमत् तत् प्रसज्यते ॥ ४४७॥ फिर प्रस्तुत वादी का यह कहना कि एक वस्तु अपने अस्तित्वक्षण के बाद अस्तित्व में नहीं रहती एक अन्तर्विरोधपूर्ण बात है, क्योंकि वह एक ओर तो इस वस्तु को 'यह वस्तु' कह रहा है और दूसरी ओर उसके सम्बन्ध में कह रहा है कि वह अस्तित्व में नहीं रहती । दूसरे, प्रस्तुत वादी के मतानुसार एक वस्तु का अस्तित्व में न रहना एक आदिमान् घटना ठहरेगी । टिप्पणी- प्रस्तुत कारिका में उठाए गए दोनों प्रश्नों की चर्चा पहले हो १. क का पाठ : तदैव । २. क ख दोनों का पाठ 'तच्चेन्न' है, लेकिन उक्त पाठ ही मूलपाठ प्रतीत होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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