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शास्त्रवार्तासमुच्चय
कारण है ही नहीं (उसी प्रकार जैसे कि प्रस्तुत वादी इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि एक वस्तु के नाश का तथाकथित कारण इस नाश का कारण है ही नहीं) ।
न सत्स्वभावजनकस्तद्वैफल्यप्रसंगतः । जन्मायोगादिदोषाच्च नेतरस्यापि युज्यते ॥४३३॥ न चोभयादिभावस्य विरोधासंभवादितः । स्वनिवृत्त्यादिभावादौ कार्याभावादितोऽपरे ॥४३४॥
(इन वादियों का तर्क हैं) “एक अस्तित्वशील स्वभाव वाली वस्तु को जन्म देना किसी कारण का काम नहीं और वह इसलिए कि ऐसे स्वभाव वाली वस्तु के जन्म में किसी कारण का कोई उपयोग नहीं। इसी प्रकार, एक नास्तित्वशील स्वभाव वाली वस्तु को जन्म देना भी किसी कारण का काम नहीं
और वह इसलिए कि ऐसे स्वभाव वाली वस्तु का जन्म संभव ही नहीं तथा कछ ऐसी ही दुसरी कठिनाईयों के कारण । दूसरी ओर, एक वस्तु को अस्तित्वशील तथा नास्तित्वशील दोनों स्वभावों वाली कहने में स्ववचनविरोध आता है जबकि उसे न अस्तित्वशील न नास्तित्वशील स्वभाववाली कहना उसे एक असंभव वस्तु बना देना होगा; इसी प्रकार की कुछ अन्य कठिनाईयां भी हैं।" कुछ दूसरे वादियों का कहना है कि एक कार्य की उत्पत्ति निम्नलिखित प्रकार के तर्कों की सहायता से असंभव सिद्ध की जा सकती है : “यदि इस कार्य के कारण का स्वभाव अपना नाश करना है तो उसका स्वभाव इस कार्य को जन्म देना नहीं हो सकता, अदि आदि (अर्थात् यदि कार्य के कारण का स्वभाव इस कार्य को जन्म देना है तो उसका स्वभाव अपना नाश करना नहीं हो सकता, न ये दोनों बातें उसका स्वभाव हो सकती हैं, न इनमें से एक भी नहीं) ।"
टिप्पणीप्रस्तुत कारिका में हरिभद्र कार्योत्पत्ति की संभावना का खंडन दो तर्को की सहायता से करा रहे है, और क्योंकि ये दोनों तर्क परस्पर समानान्तर हैं वे इनमें से पहले को विस्तार से प्रस्तुत करते हैं तथा दूसरे को इंगित मात्र से । पहले तर्क में निम्नलिखित चार विकल्पों पर विचार किया गया है :
(१) उत्पन्न होने वाला कार्य अस्तित्वशील है । (२) उत्पन्न होने वाला कार्य नास्तित्वशील है । (३) उत्पन्न होने वाला कार्य अस्तित्वशील तथा नास्तित्वशील दोनों है।
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