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________________ चौथा स्तबक ११५ फिर कहीं अन्यत्र भगवान् ने भिक्षुओं को सम्बोधित करके स्वयं कहा है कि यह पृथ्वी एक कल्प तक स्थिर रहने वाली है (जिसका अर्थ यह हुआ कि यह पृथ्वी क्षणस्थायिनी नहीं) । पञ्च बाह्या द्विविज्ञेया इत्यन्यदपि चार्षकम् । प्रमाणमवगन्तव्यं प्रक्रान्तार्थप्रसाधकम् ॥३६७॥ इसके अतिरिक्त यह भी एक शास्त्रवचन है कि पाँच बाह्य (भौतिक) पदार्थ दो इन्द्रियों द्वारा जाने जा सकने योग्य हैं (अर्थात् एक इन्द्रियविशेष द्वारा तथा मन रूप सामान्य इन्द्रिय द्वारा जाने जा सकने योग्य है) और यह शास्त्रवचन हमारे अभीष्ट मन्तव्य को सिद्ध करने वाला है (अर्थात् इस मन्तव्य को कि जगत् की वस्तुएँ क्षणिक मात्र नहीं) । क्षणिकत्वे यतोऽमीषां न द्विविज्ञेयता भवेत् । भिन्नकालग्रहे ह्याभ्यां तच्छब्दार्थोपपत्तितः ॥३६८॥ सचमुच, ये बाह्य पदार्थ यदि क्षणिक होंगे तो दो इन्द्रियों द्वारा जाने जा सकने योग्य नहीं होंगे क्योंकि दो विभिन्न इन्द्रियों द्वारा दो विभिन्न समयों पर जाना जाने वाला पदार्थ ही 'दो इन्द्रियों द्वारा जाना सकने योग्य' कहलाता है। एककालग्रहे तु स्यात् तस्यैकस्याप्रमाणता । गृहीतग्रहणादेवं मिथ्या तथागतं वचः ॥३६९॥ यदि कोई पदार्थ दो इन्द्रियों द्वारा एक ही समय में ग्रहण किया जाएगा तो इनमें से एक इन्द्रिय द्वारा जनित ज्ञान अप्रमाण होना चाहिए और वह इसलिए कि यह ज्ञान एक ज्ञात वस्तु को विषय बना रहा होगा (जबकि प्रस्तुत वादी के मतानुसार 'प्रमाण' नाम है 'एक अज्ञात वस्तु को विषय बनाने वाले ज्ञान' का); और ऐसी दशा में भगवान् बुद्ध का यह वचन मिथ्या होगा कि कुछ पदार्थ दो इन्द्रियों द्वारा जाने जा सकने योग्य हैं । इन्द्रियेण परिच्छिन्ने रूपादौ तदनन्तरम् । यद्रूपादि ततस्तत्र मनोज्ञानं प्रवर्तते ॥३७०॥ एवं च न विरोधोऽस्ति द्विविज्ञेयत्वभावतः । पञ्चानामपि चेन्न्यायादेतदप्यसमञ्जसम् ॥३७१॥ कहा जा सकता है : “एक इन्द्रिय द्वारा जाने गए रूप आदि के ठीक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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