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शास्त्रवार्त्तासमुच्चय
से भिन्न स्वभाव वाला सचमुच नहीं जो गंध से भिन्न वस्तुओं को जन्म देती हैं । लेकिन ऐसा उत्तर देने का अर्थ यह हुआ कि उक्त रूप उन वस्तुओं से भिन्न स्वभाव वाला सचमुच है जो बुद्धि (तथा रूप आदि) से भिन्न वस्तुओं को जन्म देती है ।
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टिप्पणी-क्षणिकवादी का कहना है कि रूप अरूपजनक से भिन्न तथा अबुद्धिजनक से भिन्न, दोनों कहलाया जाने के बावजूद वस्तुतः एक ही स्वभाव वाला है; इस पर हरिभद्र की आपत्ति है कि यदि रूप को एक नामविशेष दिए जाने का कोई वास्तविक आधार नहीं तब तो उसे 'अगंधजनक से भिन्न' यह नाम (अथवा अन्य कोई नाम) भी दिया जा सकना चाहिए । और यदि उसे एक नामविशेष दिए जाने का कोई वास्तविक आधार है तब यहाँ नाम - भेद स्वभावभेद का सूचक होना चाहिए ।
एवं व्यावृत्तिभेदेऽपि तस्यानेकस्वभावता । बलादापद्यते सा चायुक्ताऽभ्युपगमक्षतेः ॥३२१॥
और उस स्थिति में उस रूप को उन उन वस्तुओं से भिन्न स्वभाव वाला कहना भी प्रस्तुतवादी को यही मानने के लिए विवश करेगा कि यह रूप अनेक स्वभावों वाला है, जब कि एक वस्तु को अनेक स्वभावों वाली मानना इस लिए अयुक्तिसंगत है कि वैसा करने पर प्रस्तुतवादी अपने स्वीकृत मत को छोड़ रहा होगा ।
टिप्पणी- वस्तुतः प्रस्तुत चर्चा में क्षणिकवादी के विरुद्ध हरिभद्र की मुख्य आपत्ति यही है कि वह एक वस्तु को एक ही स्वभाव वाली मानता है अनेक स्वभावों वाली नहीं । यदि क्षणिक वादी रूप आदि में से प्रत्येक को तथा रूपप्रत्यक्ष को अनेक स्वभावों वाला मान ले तो हरिभद्र को यह मानने में कोई तात्त्विक आपत्ति नहीं होगी कि रूप आदि रूपप्रत्यक्ष को जन्म देने वाली कारणसामग्री सचमुच हैं ।
विभिन्नकार्यजननस्वभावाश्चक्षुरादयः ।
यदि ज्ञानेऽपि भेदः स्यात् न चेद् भेदो न युज्यते ॥३२२॥
यदि नेत्र आदि विभिन्न वस्तुओं का स्वभाव विभिन्न कार्यों को जन्म देना हो तो इन नेत्र आदि से जनित ज्ञान भी विभिन्न स्वभावों वाला होना चाहिए: और यदि कहा जाए कि विभिन्न कार्यों को जन्म देना नेत्र आदि का स्वभाव
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