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________________ चौथा स्तबक - किन्हीं वस्तुओं के सम्बन्ध में यह कहना कि किसी कार्यविशेष को जन्म देने में वे सभी समर्थ हैं तभी युक्तसंगत है जब इनमें से प्रत्येक वस्तु उक्त कार्य को जन्म देने में समर्थ हो; क्योंकि 'सबकी सामर्थ्य' 'प्रत्येक की सामर्थ्य' के बिना सम्भव नहीं ।। अत्र चोक्तं न चाप्येषां तत्स्वभावत्वकल्पना । साध्वीत्यतिप्रसंगादेरन्यथाऽप्युक्तिसंभवात् ॥३१२॥ . और यह हम कह ही चुके (कारिका ३०९ में) कि किन्हीं अनेक वस्तुओं को किसी एक कार्य का कारण मानना उचित नहीं; और नहीं यह कल्पना करना उचित है कि एक कार्य का यह स्वभाव ही है कि वह अनेक घटकों वाली कारणसामग्री से उत्पन्न हो, क्योंकि उस दशा में और कुछ भी कह बैठना सम्भव होने के कारण अवाञ्छनीय निष्कर्षों का सामना करना पड़ता है तथा ऐसी ही दूसरी कठिनाइयाँ उठ खड़ी होती है। [उदाहरण के लिए, तब कहा जा सकेगा कि एक कार्य का जनक अनेक कारणसामग्रियाँ हो सकती हैं अथवा यह कि एक कार्य की कारणसामग्री का एक ही घटक इस कार्य का वास्तविक कारण है जब कि शेष घटक वहाँ बेकार बैठते हैं । ] अथान्यत्रापि सामर्थ्य रूपादीनां प्रकल्प्यते । न तदेव तदित्येवं नाना चैकत्र तत् कुतः ॥३१३॥ कल्पना की जा सकती है कि रूप आदि बुद्धि के अतिरिक्त किन्हीं अन्य वस्तुओं को भी (अर्थात् रूप आदि को भी) उत्पन्न करने में समर्थ हैं, लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि रूप आदि की यह दूसरी सामर्थ्य उनकी उस पहली सामर्थ्य से भिन्न है और अनेक सामर्यों का एक ही वस्तु में रहना कैसे सम्भव ? सामग्रीभेदतो यश्च कार्यभेदः प्रगीयते । नानाकार्यसमुत्पादादेकस्याः सोऽपि बाध्यते ॥३१४॥ दूसरे, प्रस्तुत वादी की जो यह मान्यता है कि विभिन्न कार्यों का जन्म विभिन्न कारणसामग्रियों से होता है वह भी बाधित सिद्ध होती हैं यदि यह मान लिया जाए कि एक ही कारणसामग्री से अनेक कार्यों का (उदाहरण के लिए, एक ही कारणसामग्री से एक ओर बुद्धि का तथा दूसरी ओर रूप आदि का जन्म होता है) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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