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________________ शास्त्रवार्तासमुच्चय वस्तुनोऽनन्तरं सत्ता 'तत्तथातां विना भवेत् । नभ:पातादसत्सत्त्वयोगाद् वेति न तत्फलम् ॥३००॥ यदि एक वस्तु के अनन्तर एक दूसरी वस्तु अस्तित्व में आए लेकिन यह दूसरी वस्तु इस वस्तु का रूपान्तर न हो तो वह उसका कार्य नहीं हो सकती, क्योंकि उस दशा में या तो यह मानना पड़ेगा कि यह दूसरी वस्तु आकाश से टपकी या यह कि एक अ-सत्ताशील वस्तु ने भावरूप प्राप्त किया है। असदुत्पत्तिरप्येव नास्यैव प्रागसत्त्वतः । किं त्वसत् सद् भवत्येवमिति सम्यग् विचार्यताम् ॥३०१॥ और ऐसी दशा में एक भावरूप वस्तु की उत्पत्ति एक अ-सत्ताशील वस्त की उत्पत्ति इस अर्थ में नहीं कहलाई कि यह भावरूप वस्तु पहले अस्तित्व में न थी अपितु इस अर्थ में कि एक अ-सत्ताशील वस्तु ने भावरूप प्राप्त कर लिया; प्रस्तुत वादी को इस स्थिति पर ध्यान से विचार करना चाहिए । एतच्च नोक्तवद् युक्त्या सर्वथा युज्यते यतः । नाभावो भावतां याति व्यवस्थितमिदं ततः ॥३०२॥ और क्योंकि पूर्वोक्त कारणों से यह बात सर्वथा अयुक्तिसंगत सिद्ध हो चुकी कि एक असत्ताशील वस्तु भावरूप प्राप्त कर सकती है इसलिए यह मत स्थिर रहा कि एक अभावरूप वस्तु भाव रूप नहीं बनती। (४) क्षणिकवाद में सामग्रीकारणतावाद की अनुपपत्ति याऽपि रूपादिसामग्री विशिष्टप्रत्ययोद्भवा । जनकत्वेन बुद्ध्यादेः कल्प्यते साऽप्यनथिका ॥३०३॥ और जो प्रस्तुत वादी ने यह कल्पना की है कि अपने कारणविशेष से उत्पन्न रूप आदि कारण-सामग्री (= कारणभूत वस्तु-समुदाय) बुद्धि (=ज्ञान) आदि कार्यों को जन्म देती है वह भी बेकार की बात है । टिप्पणी–प्रस्तुत कारिका में हरिभद्र एक नई चर्चा का सूत्रपात करते हैं जिसे समझने के लिए एक बात ध्यान में रखना आवश्यक है और वह कि क्षणिकवादी की मान्यतानुसार रूप-प्रत्यक्ष की (अर्थात् रूप के प्रत्यक्षात्मक ज्ञान की) उत्पादक कारण-सामग्री निम्नलिखित चार भागों में बँटी हुई है १. क ख दोनों का पाठ : तत्तथा तां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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