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चौथा स्तबक
वाला (अतः उसे जन्म देने की क्षमता वाला) है, लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि ऐसा नहीं माना जा सकता और वह इसलिए कि प्रस्तुत वादी के मतानुसार यह वस्तु अपने जन्म से पूर्व सर्वथा अस्तित्वशून्य है। उत्तर दिया जा सकता है कि क्योंकि उक्त वस्तु अपने जन्म से पूर्व सर्वथा अस्तित्वशून्य है. इसीलिए तो उसके कारण को उसे अस्तित्व में लाने वाला (अतः उसे जन्म देने की क्षमता वाला) मान लिया जाना चाहिए; लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि बात ऐसी नहीं और वह इसलिए कि जो वस्तु सर्वथा अस्तित्वशून्य है उसके संबंध में यह कहना उचित नहीं कि अमुक कोई दूसरी वस्तु 'उसे' अस्तित्व में लाती है - 1
टिप्पणी- यहाँ यशोविजयजी 'इच्छन्तु' के स्थान पर 'इत्थं तु' यह पाठ स्वीकार करते हैं लेकिन उससे कारिका के अर्थ में कोई तात्त्विक अन्तर नहीं पड़ता ।
वस्तुस्थित्या तथा तद्यत् तदनन्तरभावि तत् ।
नान्यत् ततश्च नाम्नेह न तथाऽस्ति प्रयोजनम् ॥ २८०॥
उत्तर दिया जा सकता है : " वस्तुस्थितिवश एक वस्तु एक दूसरी वस्तु को अस्तित्व में लाने वाली कही जाती है क्योंकि यह दूसरी वस्तु इस वस्तु के अनन्तर ( = ठीक बाद) उत्पन्न होती है तथा अन्य कोई वस्तु इस वस्तु के अनन्तर उत्पन्न नहीं होती; ऐसी दशा में नाम संबंधी चर्चा से हमें कोई प्रयोजन नहीं (अर्थात् इस चर्चा से हमें कोई प्रयोजन नहीं कि उक्त वस्तु को 'उक्त दूसरी वस्तु को अस्तित्व में लाने वाली' यह नाम दिया जाए या नहीं) ।" इस पर हमारा कहना है
नाम्ना विनाऽपि तत्त्वेन विशिष्टावधिना विना ।
चिन्त्यतां यदि सन्यायाद् वस्तुस्थित्याऽपि तत्तथा ॥ २८९ ॥
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यदि नाम की बात छोड़ दी जाए तो भी सोचना चाहिए कि क्या वस्तुस्थितिवश भी कोई वस्तु एक विशिष्ट अवधि वाली सचमुच हुए बिना किसी दूसरी वस्तु को अस्तित्व में लाने वाली (अर्थात् इस दूसरी वस्तु का कारण) सचमुच कही जा सकती है ।
टिप्पणी- हरिभद्र का आशय यह है कि 'एक कारणविशेष एक कार्यविशेष को जन्म देने की क्षमता वाला है' यह कहने का अर्थ हुआ कि उक्त कार्य उक्त कारण की 'विशिष्ट अवधि ( = विशिष्ट सीमा) ' है, और तब वे
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