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शास्त्रवार्त्तासमुच्चय
'अमुक अभाव अस्तित्व में आया' तब उसका भी अर्थ यही होता है कि 'अमुक भावरूप वस्तु अस्तित्व में नहीं रही' ।
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एतेनाहेतुकत्वेऽपि ह्यभूत्वा नाशभावतः । सत्ताऽनाशित्वदोषस्य प्रत्याख्यातं प्रसञ्जनम् ॥२७१॥
अतः यद्यपि हम नाश को अहेतुक मानते हैं फिर भी हम अपने मत के विरुद्ध उठाई गई इस आपत्ति का उत्तर दे सके हैं कि जब एक भावरूप वस्तु का नाश पहले अस्तित्व में न रहने के बाद अस्तित्व में आता है तब आगे चलकर (इस नाश का नाश होने के फलस्वरूप ) उक्त भाव रूप वस्तु अविनष्ट बन जानी चाहिए (अर्थात् उसे पुनः अस्तित्व में आ जाना चाहिए) ।
टिप्पणी- क्षणिकवादी द्वारा समर्थित नाश - अहेतुकतावाद का विस्तृत खंडन हरिभद्र छठे स्तबक में करने जा रहे हैं । यहाँ हमें इतना ही समझ लेना है कि क्षणिकवादी की दृष्टि में 'प्रत्येक वस्तु, क्षणिक है, ' 'प्रत्येक वस्तु स्वभावतः नाशवान् है', 'प्रत्येक वस्तु का नाश किसी कारण की प्रतीक्षा किए बिना होता है, 'प्रत्येक वस्तु का नाश अहेतुक है' आदि वाक्य सर्वथा समानार्थक हैं ।
प्रतिक्षिप्तं च यत् सत्ताऽनाशित्वागोऽनिवारितम्' । तुच्छरूपा तदाऽसत्ता भावाप्तेर्नाशितोदिता ॥ २७२॥
धर्मकीर्ति के उक्त वक्तव्य का खंडन हमने यह दिखाकर कर दिया कि उनका मत स्वीकार करने पर एक नष्ट हुई वस्तु के पुनः अविनष्ट बन जाने वाली आपत्ति उठे बिना नहीं रहती । यह इसलिए कि एक वस्तु के स्थितिक्षण से अगले क्षणों में उसका अभाव तुच्छ रूप है जब कि प्रस्तुतवादी को यह मानने के लिए हम बाध्य कर चुके कि एक तुच्छ रूप वस्तु भावरूप अतः विनाशी है ।
भावस्याभवनं यत् तदभावभवनं तु यत् । तत्तथाधर्मके ह्युक्तविकल्पो न विरुध्यते ॥ २७३॥
वस्तुतः एक भावरूप वस्तु का न होना ही उस वस्तु के अभाव का होना है; यही कारण है कि उन उन धर्मों वाले (अर्थात् ज्ञेयता, सत्ता आदि धर्मों वाले) इस अभाव के संबंध में पूर्वोक्त प्रकार का विकल्प भी उठाना अनुचित
१. ख का पाठ : सत्त्वाना° । २. ख का पाठ सत्त्वाना" |
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