________________
चौथा स्तबक
एक वस्तु के स्थितिक्षण से अगले क्षणों में रहने वाले उस वस्तु के विनाशजन्य अभाव का यथावत् स्वरूप-निर्धारण वह प्रत्यक्षात्मक ज्ञान नहीं करा सकता जिसका विषय एक क्षणमात्र (अर्थात् अपना विषय बनी हुई वस्तु का स्थिति-क्षण मात्र) है ।
टिप्पणी-हरिभद्र का आशय यह है कि प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय एक वस्तु का वर्तमान स्वरूप बनता है इस वस्तु का आगामी रूप नहीं।
तस्यां च नागृहीतायां तत्तथेति विनिश्चयः । न हीन्द्रियमतीतादिग्राहकं सद्भिरिष्यते ॥२६४॥
और एक वस्तु के अभाव को जब तक यथार्थ ज्ञान का विषय नहीं बना लिया जाए तब तक निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि यह वस्तु इस अभाव वाली है ही । सचमुच बुद्धिमान् लोगों की यह मान्यता नहीं कि प्रत्यक्ष द्वारा भूतकालीन आदि (अर्थात् भूतकालीन, भविष्यत्कालीन आदि) वस्तुओं का ज्ञान हो सकता है ।
टिप्पणी-प्रस्तुत कारिका में हरिभद्र इस संभावना का अधिक सीधे रूप से खंडन करते हैं कि एक वस्तु का आगामी विनाश उसी प्रत्यक्षज्ञान का विषय बन सकता है जिसका विषय 'इस वस्तु का वर्तमान स्थितिक्षण है । उनका सीधा तर्क है कि प्रत्यक्षज्ञान का विषय एक वर्तमान वस्तु हुआ करती है एक आगामी वस्तु (अथवा एक भूतपूर्व वस्तु नहीं) । हरिभद्र की समझ है कि इस प्रकार वे यह सिद्ध करने में समर्थ हो गए कि प्रत्यक्ष-ज्ञान क्षणिकवादी की इस मान्यता का समर्थन नहीं करता कि जगत् की प्रत्येक वस्तु क्षणिक है; (आगे चलकर वे यह सिद्ध करने का प्रयत्न करेंगे कि अनुमानज्ञान भी क्षणिकवादी की इस मान्यता का समर्थन नहीं करता) ।
अन्तेऽपि दर्शनं नास्य कपालादिगतेः क्वचित् । न तदेव घटाभावो भावत्वेन प्रतीतितः ॥२६५॥
(यह तो हुई एक तथाकथित क्षणभंगुर वस्तु के अभाव की बात), कालान्तर में भी हमें एक वस्तु के (उदाहरण के लिए, घड़े के) अभाव का प्रत्यक्ष नहीं होता अपितु होता है घड़े के टुकडे आदि भावरूप वस्तुओं का ही। यह नहीं कहा जा सकता कि ये घड़े के टुकड़े ही घड़े का अभाव हैं, क्योंकि इन टुकड़ों का प्रत्यक्ष हमें भावरूप से होता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org