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________________ ७४ शास्त्रवार्तासमुच्चय सर्वथा असत्ताशील; इसके विपरीत, हरिभद्र की अपनी मान्यता यह है कि प्रत्येक वस्तु सदा किसी सीमा तक सत्ताशील हुआ करती है तथा किसी सीमा तक असत्ताशील । हरिभद्र की भाषा में 'प्रत्येक वस्तु क्षण भर टिकने वाली है' यह कहने का अर्थ है कि प्रत्येक वस्तु अपने स्थितिक्षण से अगले क्षण में अभाव रूप हो जाती है अथवा यह कि प्रत्येक वस्तु के स्थितिक्षण से अगले क्षण में इस वस्तु का अभाव उत्पन्न होता है । स क्षणस्थितिधर्मा चेद् द्वितीयादिक्षणस्थितौ । युज्यते ह्येतदप्यस्य तथा चोक्तानतिक्रमः ॥२५०॥ कहा जा सकता है कि एक वस्तु का नाश (अभाव) क्षण भर टिकने वाला है (न कि सब समय टिकने वाला अथवा कुछ समय टिकने वाला), लेकिन यह कहना तभी युक्तिसंगत ठहरेगा जब उक्त नाश (एक क्षण टिकने के बाद) दूसरे तथा उसके बाद वाले क्षणों में अनुपस्थित रहे और उस दशा में वही पिछली कठिनाई फिर उठ खड़ी होगी (अर्थात् यह कठिनाई कि एक नष्ट हुई वस्तु अपने अभाव का नाश होने के फलस्वरूप दुबारा अस्तित्व में आया करती है) । क्षणस्थितौ तदैवास्य नास्थितियुक्त्यसंगतेः । न पश्चादपि सा नेति सतोऽसत्त्वं व्यवस्थितम् ॥२५१॥ सचमुच, एक वस्तु का नाश यदि क्षण भर टिकने वाला है तब यह तो नहीं हो सकता कि यह नाश अपनी स्थिति के क्षण में भी अनुपस्थित रहे क्योंकि वैसा होना एक अयुक्तिसंगत बात होगी । लेकिन उस दशा में (अर्थात् एक वस्तु के नाश को क्षण भर टिकने वाला मानने पर) यह बात तो न होगी कि. यह नाश कालान्तर में भी (अर्थात् अपनी स्थिति के क्षण के बाद भी) अनुपस्थित नहीं रहे । और तब प्रस्तुत वादी का मत यही ठहरा कि एक भावरूप वस्तु ही अभाव रूप बनी जाती है (जब कि इस सिद्धान्त के विरुद्ध आपत्ति हमने अभी कारिका २४९ में उठाई ही है)। न तद् भवति चेत् किं न सदा सत्त्वं तदेव यत् । न भवत्येतदेवास्य भवनं सूस्यो विदुः ॥२५२॥ कहा जा सकता है कि एक वस्तु का अभाव अस्तित्व में नहीं आया, १. क का पाठ : सदाऽसत्त्वं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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