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इय भरुयच्छ-नयर-निवेसिय-सिरि-संवलिया-विहारस्स सुदरिसणा-चरिए पुव्व-भव-'संभरणो नाम तीओ उद्देसो 'सम्मत्तो।।
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धम्माधम्म-वियारो नाम-चउत्थो उद्देसो
तं पुव्व-जम्म-संभार-भावियं निय-सुयं सुणेऊण। चिंतइ राया हा किं सव्वं बालाए मह कहियं ।।३४१ ।। अहवा तं कत्थ पुरं कत्थ मुणी तं वणं वडो कत्थ। कह अरिहंतो देवो पुव्व-भ(४८ब) वो कत्थ बालाए।।३४२।। कह सवलिया वि संती विद्वा बाणेण मुक्क-पिय-पाणा। कत्थेत्थ समुप्पण्णा एसा एयं कहं नाणं ।।३४३ ।। इय चिंतिऊण राया परिओसइ निय-सुयं पयत्तेण। जंपइ पुत्त ! किमेयं ? अलियं मा कुणह वेरगं।।३४४।। एसा जणणी तुह दुक्ख(४९अ)-दुक्खइया परियणो वि कय-सोओ। एयाओ बाल-वयंसियाओ संठवह चय सोयं ।।३४५।। एयाइं तुंग-वर-मंदिराई एसा वि विउल-राय सिरी। उवभुंजह सहिया सहियणेणं मा कुणह वेरग्गं।।३४६ ।। निय-दइय-कर-विलग्गा परिणयण-सिरीए भूसिय-सरीरा। सहियायणेण सहिया आणंदं जणह ज[ण]णीए।।३४७।। जाइ-कुल-रूय-सोहा विज्जा-विन्नाण-लच्छि-गुण-कलिया।। आणावडिच्छए परियणे वि कह कुणसि वेरग्गं' ।।३४८।। सुणिऊण राय-वयणं सुदरिसणा भणइ ताय! संसा(४९ब)रे। सव्वमसारं एयं सरिसं तरु-चवल-छायाए।।३४९।।
१. संभरणे. २. समात्तो.
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