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गिंभ-तव-तविय-देहाई पाउसागमण-पमुइय-मणाई। पिउ पिउ भणंति कत्थइ करुणं बप्पीहय-कुलाई।।३१६ ।। कत्थइ माणंसिणि-माण-गंठि(४४ब)-विद्दवण-कोइला महुरं। वाहरइ पहिय-पिय-दीण-घरिणि-मण-वज-दंडो व्व।।३१७।। सिय-वाय-गहिय-कंपंत-देह-धारा-करालिय-सरीरा। पत्थंति वासयं-पंथिया वि पर-मंदिरे दीणा।।३१८ ।। अलिउल-निहम्मि गयणे चवला किह विजुला चम(४४/१अ)क्केइ। खण-दिट्ठ-नट्ठ-रिद्धि व्व चंचला मंदउन्नाणं।।३१९ ।। गहिर-घण-सिहि-कलयलाराव-भीरुया तहय रायहंसा वि। वच्चंति माणसं गलिय-माण-संसइय-नेहा वि।।३२०।। वियसंत-सुयंध-कयंब-के(य)इ-गंधड्ड-पवण-सुरहि-जलं। सुरहि-जलासासिय-गिंभ(४४/१ब)-तविय-अहिसित्त-महिवीढं॥३२१॥ कह-कह व सत्त-रत्तं विलंबिओ वरिसिऊण जा मेहो। छुह-सुसिय-तणू सा ता संवलिया नियइ चउपासं ।।३२२।। संकुचिय-सव्व-गत्ता वि कहव गयणंगणं समुड्डेवि। भोयण-कए वराया मिच्छा-वासं अघावासं।।३२३ ।। (४५अ) जं हड्ड-चम्म-वस-रुहिर-विरस-दुप्पेच्छ'-मासखंडेहिं। विगराल-करंकोवरि-निबद्ध-गिद्धालि-कलरावं ।।३२४ ।। चउपास "भमंत-सिवा-रउद्दयप्फेक्कार-भीसणं पत्ता। गहिऊण मास-खंडं झडत्ति जा गयणमुड्डेइ ।।३२५ ।। वाम-करग्ग-ट्ठिय-चंड-चाव-गुण(४५ब)-निसिय-तिक्ख-सरलेण। आयण्ण-वियट्टिय-मग्गणेणं पहया उरे ताव।।३२६ ।। बाण-विद्धा वि सा सुयणु ! सवलिया लहु सरंतरं एगं। उडुंत-“पडंती कह व काणणुद्देसमवसरणा(?रिआ)।।३२७ ।।
१. गंधढ. २. विलंपिओ. ३. च्छुह. ४. ताय. ५. दुपेच्छ. ६. गिद्धो. ७. भवंत ८. पडता.
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