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ता नूणं तत्थ पुरे पुव-भवे मुणिवराण पासम्मि। कइयावि सुयं एवं जाईनाणेण संभरियं ।।३०४।। इय चिंतिऊ(४२ब)ण एयं भणियं नाइत्तएण कमलच्छि !। 'तत्थ भरुयच्छ-नयरे कुसलं तेसिं वर-मुणीणं।।३०५।। धण्णा तुम किसोयरि ! कुदिट्ठि-कुलसंभवा वि जिण-धम्मे। अमुणिय-जिणिंद-गुण-'कित्तणा वि वयणेण पडिबुद्धा ।।३०६ ।। इय एरिस पुव्व-दिट्ठ-जाय-गुरु-कोउओ नरिंदो वि। जंपइ ‘पुत्त ! किमेयं कइया दिळं सुयं कइया।।३०७।। भणियं सुदरिसणाए ‘आयण्णह ताय! 'तत्थ भरुयच्छे। सरि-नम्मया-(४३अ) समीवे नामं कोरिंटमुजाणं।।३०८।। मझे तस्सुत्तुंगो विसाल-गहिरो वड-हुमो अत्थि। बहु-सउण-गणावासो तत्थेगा संवलिया वसइ।।३०९।। सा तत्थ कयावासा समए गुरु-गब्भ-वेयणाक्कता। अइ-दूसह-सूलुप्पण्ण-वेयणा पसविया दुहिया।।३१०।। गुरु-पसव-दुक्ख-वियणा-करालियाए पिओ वि न सहाओ। अह दुक्खियाउ सच्चं आजम्मं हुंति(४३ब)नारीओ।।३११।। विलवंती पि स-दुक्खं पंखा-जुयलेण झंपिवि सुयाए। तम्मोह-मोहिय-मई मणम्मि जा किं पि चिंतेइ।।३१२।। ता मुक्क-चंड-पवणो दह-दिहि उच्छलिय-धूलि-संघाओ। पसरंत-मेह-जालो समागओ पाउसो कालो।।३१३।। "सिहि-गल-निहेहिं सयलं पि नहयलं 'छाइयं सुमेहेहिं। वरिसंत-निवड-मुसल-प्पमाण-धाराहिं महिवीढं।।३१४ ।। (४४अ) कत्थइ १"सिहिणो तड्डविय-मंडवा विहिय-मेह-पडिसद्दा।
नच्चंति दीहरोरालि-रंजिया मेह-सद्देण।।३१५ ।। १. कित्तिणा. २. तत्थ. ३. तुंगो. ४. गुणावासो. ५. कंता. ६. विलवंता. ७. सिहिं
८. च्छाइय. ९. पम्माण. १०. सुहिणो.
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