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इय-पर-रिद्धि-पमुइय-जणोह-परिवसिय-गाम-नयरे वि। तत्थेगो च्चिय दोसो कर-सद्दो जं गइंदाणं ।।१०० ।। तत्थ पुणो वर-नयरं वण्णइ जह सुरगुरू पयत्तेण। तह वि जंपेमि मइ-वजिओ वि जह तं नि(१४अ) सामेह।।१०१ ।। कणयमय-मयर-तोरण-विरइय-सिहि-कीर-सारियाहिं पि। सरिस-विहवेण ण मुणइ जत्थ जणो नियय-भवणाई।।१०२।। भवणुच्छंगे सरणागयं पि रवि-किरण-पसर-भयभीयं । कवलिज्जइ जत्थ तमं थंभट्ठिय-मणि-मयूहेहिं।।१०३।। णिद्दिट्ठ-दविण-संखा भुवणोवरि-रइय-धवलचिंधेहिं। तं संसिज्जइ अमराण संपया नयर-लोएहिं।।१०४।। घर-सिहर-मत्त-वारण (१४-ब)तोरण-थंभग्ग-रइय-रयणेहिं। रयणायरो कलिजइ जला'वसेसो कओ विहिणा।।१०५।। भासिज्जइ पंजर-सारियाहिं सत्थत्थ-नीइ-कुसलाहिं। आगमणे पाहुणयाण सविणयं सागयं जत्थ।।१०६ ।। कवि-सीसय-जंतऽट्टालएहिं चलणेहिं जत्थ दुल्लंघो। चाउद्दिसि-पायारो विणिम्मिओ ‘फालिम-सिलाहिं।।१०७ ।। निम्मल-जलोह-पूरिय-दुल्लंघा खाइया वि जा तत्थ। कलि-कला१५आस-वारणे णं परिट्ठिया धम्मरेह व्व।।१०८।। सुकईहिं सया बंधो जत्थ परं किज्जए सुकव्वाणं। कयदोसो जत्थ परं गहिजए राहुणा चंदो।।१०९।। जत्थ सया पर दंडो सुछत्त-चिंधाण नेय लोयाण। जत्थ परलोयतत्ती मुणीण परिचत्त-संगाणं ।।११०।। हट्ट-ऽट्टालय-गोउर-चउक्क-तिय-चच्चरेहिं रमणीयं । उवहसिय-सुरविमाणं व सिरिउरं नामं तं नयरं।।१११।।
१. गयंदाणं. २. वहिवेणण्ण. ३. विसेसो. ४. कव सीस. ५. फालम.
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