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मणुयत्तं च तओ जइ पुण्ण-विहीणो-ण अज-खित्तम्मि। लद्धे वि अज्ज 'खित्ते न कुलं जाई बलं रूयं ।।१।। (११ब) एयं पि अहव पावइ अप्पाऊ अहव होइ वाहिल्लो। दीहाऊ नीरोगो हवेइ जइ पुण्ण-जोएण।।८२।। . पत्तो सुमाणुसत्ते वि 'दंसणावरण-कम्म-दोसेण । न य पावइ जिण-धम्मं विवेय-परिवजिओ जीवो ॥८३ ।। लभ्रूण वि जिण-धम्म दंसण मोहणिय-कम्म-उदएण। संसय-सम्मत्त-जडो गुरु-वयणं नेय सद्वहइ।।८४।। अह निच्चल-सम्मत्तो जहट्ठियं सद्दहेइ गु. [१२]रु-वयणं । नाणावरणस्सुदए संसिजंतं न बुज्झेइ।।८५ ।। चारित्तमोहणीए खीणे तव-संजमं च जो कुणइ। सो पावइ मुत्तिसुहं इय भणियं धुयकिलेसेहिं।।८७।। इय एवमाइ सव्वं कमेण नाऊण दुल्लहं सुयणु। सहलीकरेह जिणवर-धम्मम्मि सुलद्ध-मणुयत्तं ।।८८।। इय भरुयच्छ-नयर-निवेसिय-सिरि संवलिया(१२-ब) विहारस्स सुदरिसणा-चरिए दुल्लह-मणुयत्त-सामग्गी कहा-संबंधो नाम पढमो उद्देसो सम्मत्तो।।१।।
१. खेत्ते. २. दंसण कम्मवरण.
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