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________________ नंदंतु महाकईणो-----...-----(र)चिउं पसिद्धीए । मंदमइणो वि विश्यंति किं पि इह जण-विणोयत्थं ।।८।। गुरुएहिं परिग्गहिओ जम्हा-----------... | ---- ।।९।। ----...--चंद व्व परोवयारिणो सुयणा । (२ब) दोसे वि गुणे पयइंति पायडे जे खलाणं पि ।।१०।। दोसे गेहंति चयंति तह गुणे जे परस्स कव्वेसु। तं निद्दोसं तेहि वि कयं जओ ते वि णंदंतु।।११।। सुयणाण गुणा दोसा खलाण भणिएण किं इमेणऽम्हं? । सव्वो वि हु इत्थ जणो निय-पयइ-पइट्ठिओ होइ।।१२।। जइ वि जणो सुकएसु कव्वसु एय: रसिओ करेइ उवहासं। देवी-सुदंसणाए सुचरियं बहुमाण-बुद्धिए।।१३।। एयं तह वि मए जण-निव्वेयकर जयम्मि विक्खायं। .. छंदालंकार-सुसद्द-वज्जिएणावि भणियव्वं ।।१४।। जुयलं ।। अलि-हंस-(३अ) मीढं-सेहुल-मय-साण-समा-जयंतु सोयारा। अहि-चालणि-महिस-बिराल-गय-समा ठंतु परिसाए।।१५।। भन्यच्छ-णिवेसिय-तुंग-विउल-सिरिसवलिया-विहारस्स। देवी सुदंसणाए चरियमिणं जण ! निसामेह।।१६।। जह सा पढमे जम्मे विजया विजाहरी य वेयड्। जह तीए निरवराहो कुक्कुडसप्पो हओ तत्थ।।१७।। जह तत्थु [] जाण-वणे जिणभवणे संतिनाह-वर-पूया। दद्दूण पुलइयंगा भत्तिपरा त(३ब)क्खणे जाया।।१८।। पह-खिण्ण-साहुणीए वेयावच्चं कयं जहा तीए। लद्धं सुबोहि-बीयं पूया सद्दहण-विणएणं ।।१९।। जह तत्थ जिणाययणे सुरवहु-पडियं च नेउरं गहियं । जह सा मरिऊण तओ भुरुयच्छे संवलिया जाया।।२०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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