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________________ १३६ अज वि चउविह-संघस्स भावओ चउविहं पि बहु-दाणं। इच्छाए देंति काले चउगइ-संसार-दुह-भीया।।१५२५ ।। अज वि विचित्त-पूया बलि-जत्ता-ण्हवण-गेय-पेच्छणयं । सुविहीए महासत्ता कुणंति तित्थुन्नइ-निमित्तं ।।१५२६।। अज वि चएवि सुकलत्त-संपया-परियणं च भव-भीया। अवहत्थिय-कलिकाला गिण्हंति तवं महा-सत्ता।।१५२७।। (२२०ब)ता महाराय! गिंभ-काल-रवि-करायवक्कंत-मंडल-जीहातरलतरं जीवियं, खण-दिट्ठ-नट्ठ-विजुलया-चंचला लच्छी, कयली-गब्भसार-सण्णिहं जोयणं, गिरि-सिहराइवन्न-सरि-सलिल-प्पवाह-समा लायण्ण संपया, सरयब्भखंड-छाया-समाणं पिय-संग-सोक्खं, तरुयरग्गि-परिसंठियसउणि-गण-समाउलो कुटुंबवासो, ववहरय-रिण-समाणं कुटुंब-पोसणं, इय एवमाइ सव्वं असासयं कलिऊण परिहरह दुरते विसए। गद्यखंड ११ अपि य(२२१अ)जह पूरियअ ण सायरु सलिलेहि, हुयवहो तित्ति न पावए ___ समिहेहिं। तह जिउ विसएहिं तित्ति न पावइ, आजम्मु वि अलजंतो वि धावइ॥१ लज्जइ सुयह न मित्त-कलत्तह, सुयणु-बंधु-दोहित्त-पुत्ताह। पोक्करंत-सिरि-पलिय न मण्णइ, विसयासत्तउ जगु अवण्णइ।। २ अवि यबहिरो हियमसुणंतो अकज-निरओ मुणेह जम्मंघो। अवसर-मोणी मोक्को धम्मेसु अणुजुओ पंगू।।१५२८।। इय भाविऊण एयं दुलहं मणुयत्तणं लहेऊण। जिणधम्म सम्मत्तं परियाणह निव ! पयत्तेण।।१५२९ ।। एगोणसयरि कोडा कोडीउ खवेवि मोहणीयस्स। देसूण कोडि म(२२१ब)ज्झे कक्खड-घण-गूढ-दिढ-गंठी।।१५३०।। राग-द्दोस-निहत्ता दंसण-मोहणिय-कम्म-संजुत्ता। भेत्तूण कहव गंठी जीवोपावेइ जिणधम्म।।१५३१।। १. गब्भासार. २. अवगणइ. ३. दुसहं. ४. सत्तरे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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