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________________ १०३ भव-सय-सहस्स-दुलहं लब्भइ जिण-दंसियं पि नाणेण। (१७६अ)नर सुर-निव्वाण-सुहं साहीणं जेण जंतूणं।।११५३ ।। भव-जलहि-पंक-महणं 'लब्भइ जिणदंसणं पि नाणेणं । नर-सुर-निव्वाण-सुहं साहीणं जेण मणुयाणं।।११५४।। अण्णाणी कह कीरउ संवेग-परायणो वि सुमुणी वि। जिण-भणियं जइ-धम्मं सावय-धम्मं च विहि-पुव्वं ।।११५५ ।। ता कायव्वा भत्ती नाणस्स सुणाणिणो ऽणुसरियव्वा'। दायव्वं जिणभणियं नाणं सिवसुह-निहाणं च।।११५६।। जे सयल-जयं मोत्ताहलं वि पिच्छंति करयलत्थं व। गह-सुर-चंद-रिक्खाण आउं माणं वियाणंति।।११५७।। धाउव्वाय-रसायण-अंजन-सिद्धीओ सयल-सिद्धीओ। जोइस-णिमित्त(१७६ब)गारुड-पिसाय-डाइणि-पउमणं(?) तं।।११५८ ।। कम्माणं परिणईओ जीवाण गई काल संखा य। उयहि-नग-पुढवि-सरि-दह-विमाण-सुर-सिद्ध-परिमाणं।।११५९ ।। सरिसेव-मणुय-जम्मे एयं सयलं पि केवि कयउण्णा। जं जाणंति जए तं सुणाण-दाण-प्पभावेण।।११६० ।। अवि यणाण-विहीणो पुरिसो जो महइ तत्तुज्जओ वि मोक्खपहं। सो चिर-गय-सप्प-पयं नियइ जले किण्ह-रत्तीए।।११६१।। भणियं च जिणागमेदुक्खं नजइ नाणं नाणं नाऊण भावणा दुक्खं। भाविय(१७७अ)मई वि जीवो विसएसु विरजए दुक्खं ।।११६२।। बीयं जिणिंदचंदेहि साहियं दंसणं सुबोहिकरं। इह खाइय-सम्मत्तस्स कारणं भव्व-भवियाणं।।११६३।। "सम्मत्त-विरहियाणं कत्तो सासय-सुहाई विउलाई। सम्मत्तं ताण कओ न निच्चलं दंसणं जेसिं।।११६४।। १. बब्भइ. २. सरियव्व. ३. सा ४. रत्ताए. ५. संम. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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