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१०२ ता कायव्वो नियमो पढमं धम्मत्थियाण धम्मंगो। नियम-रहिओ(१७४-ब) गणिज्जति पसु व्व पुरिसो 'अधम्मपरो।११४१। जं जाइ-रूय-कुल-बल-समिद्धि-सहियं सुमाणुसत्तं च। पत्तं आउय-सहियं तं नवकार-प्पहावेण।।११४२ ।। ता नवकारो सुर-मणुय-सिद्धि-सोक्खाण कारणं पढमं। भवजलहि-[?जल]-निमजंत-जंतु-वर-जाणवत्तं च।।११४३ ।। अवि यदुहियाण दुत्थियाणं आवइ-वडियाण वंद(?)-गहियाणं। गह-रिक्ख-पीडियाणं पिसाय-वेयाल-गसियाणं।।११४४ ।। गय-गंडय-सीह-वराह-रिच्छ-चउपास-रुद्ध-देसाणं। (१७५अ)नवकारो पर ताणं ताणं भव-भीय-सत्ताणं।।११४५।। बालत्तणे वि तए जं जाइ-णाणेण पाविओ बोही। नाणीण मुणिवराणं अणुट्ठियं तं तए वयणं।।११४६।। ता णाणं नेव्वाणं सक्कारणं कुगइ-वारणं नाणं। सुमुणी वि नाण-रहिओ कया वि न हु पावए मोक्खं।।११४७ ।। जह णाणी सम्मत्तं चरित्त-सिढिलो वि धरइ भावेण। णाण-विहूणो चारित्तिओ वि ण तहा सुसाहू वि।।११४८ ।। लभ्रूण वि जिणधम्मं पुणो पुणो जे भमंति संसारं। अमुणंता प(१७५-ब)रमत्थं ते णाणावरण-दोसेण।।११४९ ।। अवि यजह चंदण भारवहो करहो भारस्स भागिओ होइ । चारित्तिओ वि भागी हवेइ अन्नाण कट्ठस्स।।११५० ।। नाण-विहीणो चारित्तिओ वि न कया वि लहइ सिव-सोक्खं। अंधु व्व धावमाणो निवडइ संसार-कूवम्मि।।११५१।। जाइ-णाणं पि दुलहं विसेसओ सुयणु ! पंचविह-णाणं।
ता कायव्वा भत्ती सुणाण-सहियाण साहूणं ।११५२।। १. अहमः. २. निमजज्जत ३. सम्भमत्तं. ४. चारित्तिउ.
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