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________________ १०४ इय पाविऊण-दुलहं चउविह-संघस्स दंसणं कहव। आराहिज्जइ एवं सासय-सुह-कारणं पढम।।११६५।। अवि यचारित्त-नाण-रहिया वि जंतुणो-सुद्ध-दंसणं एयं। पावंति हु णिव्वाणं भरहाहिवईहि जह पत्तं ।११६६ ।। तह पंच-समिइ-जुत्तं तिगुत्ति-गुत्तं सुसील-संजुत्तं । नव-बंभ-गुत्ति-सहियं चारित्तं दुल्लहं एयं ।।११६७।। चारित्तं सिव-सुहयं पालेयव्वं सया वि विहि-पुव्वं । चरण-वियलो न मोक्खं पावइ सम्मत्त-जुत्तो वि।।११६८।। चारित्त-वज्जिया(१७७ब)णं नाणीण वि सोगई जओ दुलहा। पंगु व्व वणदवेण डज्झइ पासं नियतो वि।।११६९ ।। पवणेण विणा ण तरइ उयहि-जलं जह सुजाणवतंपि। तह चारित्त-विहीणो नाणी वि ण तरइ भव-जलहिं।।११७० ।। जह पंगू पिच्छंतो वि वण-दवं चअइ अंधमारूढो। तह चारित्त-समेओ नाणी वि चएइ संसारं ।।११७१ ।। भणियं जिणेहिं नाणं पगासगं दंसणं च बोहिकरं। तव-सहियं चारितं अट्ठविहं सोहए कम्म।।११७२।। अवि यनाण-समेयं चरणं लिंग-ग्गहणं च सण-विसुद्धं । संजम-सुद्धं च तवं जो कुणइ भव-क्ख ओ तस्स।।११७३ ।। एयाइं नाण-दंसण-चरित्त-रूयाइं तिन्नि-रयणाई। (१७८अ) जे धारंति जए ते दुलहा- जिण-सासणे मुणिणो॥११७४॥ एयाण भत्त-पाणोसहाइ-दाणाई दिति जे विहिणा। तेण कयं अत्ताणं ठाणं पंचविह-णाणस्स।।११७५ ।। भणियं जिणागमे१. पंचविहि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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